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पेड़ की महानता

peD ki mahanta

राजेश राजभर

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राजेश राजभर

पेड़ की महानता

राजेश राजभर

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    पेड़ किसी का मित्र नहीं होता

    परंतु—‘मित्र’ पेड़ जैसा नहीं होता!

    मित्रता की मिठास—

    पेड़ अंतिम साँस तक देता है,

    एक पेड़ ही तो है—

    जो—निःस्वार्थ जीवन जीता है...!

    अंकुरित होने से—मीट जाने तक!

    कोमल तन, आसमान छुने तक,

    पेड़ कभी नहीं, ‘छल’ करता!

    कुँठा—लिए, कहाँ ‘अपराधी’ बनता!

    पेड़ कट जाए—किन्तु,

    किसी पर ‘कुल्हाड़ी’ नहीं चलाता,

    अपना सर्वत्र लुटाक—

    गाँव-गढ़ ‘जवार’ सजाता,

    मनुष्य का अभिमान—

    कितना ही आसमान छुले,

    मगर वह पेड़—नहीं बन सकता है...!

    पेड़ नफ़रती बयार से दूर—

    भेदभाव की चादर त्याग कर,

    थके हुए मुसाफ़िर को,

    देता है—ठँडी हवा, मीठी छाँव,

    कभी नहीं डगमगाते उसके पाँव,

    पशु-पक्षी या इंसान.

    पेड़—सभी का करता है, सम्मान,

    पेड़ किसी से नहीं डरता

    वह साहस देता है—

    जीवन जीने का

    स्वयम ‘मुसीबतों’ से, लड़ने का,

    पेड़ ख़ूबियों का पुँज घना

    हर क्षण मुस्काता है...!

    पेड़ से हमको मिलती है—

    विशुद्ध हवा—व्याधि के लिए दवा,

    फूल,पत्तियाँ, फल बीज़,

    वृक्ष का—हर एक चीज़.!

    मनुष्य के लिए बड़ी सौगात है,

    ठंडी, गर्मी, बारिश, तूफ़ान

    पेड़ हमेशा—हमारे साथ है,

    सुख- दुःख,की अनमोल घड़ी में,

    शवयात्रा, शकुन—ब्याह में,

    पेड़ की उपयोगिता अटूट है,

    परहित—की ‘परंपरा’,

    पेड़ सचमुच निभाता है…!

    सच कहें तो! यह पेड़ की महानता है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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