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आवा आजु स्वराजु रे

aava aaju svraju re

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

आवा आजु स्वराजु रे

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

और अधिकश्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

    अपन राजु अब अपनइ देसवा मिहनति करउ किसनवा रे।

    देखु बढ़ि रहे देस अगारी चीन और जापान रे॥

    रहि ना जाइ पछारी देख अपना हिन्दुस्तान रे।

    जुगन-जुगन की गइ गुलामी आवा आजु स्वराज रे॥

    देखु आजु माता के सिर पर कोहनूर का ताज रे।

    अब पिसइ का तुहिका भइया कबहुँ परार पिसनवा रे॥

    अपन राजु अब अपनइ देसवा मिहनत करउ किसनवा रे॥1॥

    देखु लगाइसि होड़ बिलायति आगे निकरी जाति है।

    बढ़ा-बढ़ी की दुनियाँ मा तुम्हरिय पिछड़ी पाँति है॥

    देखु किसनवा होइ हँसी ना प्यारे भारतवर्ष की।

    ऐस करौ कुछ जेहि ते उमड़ै देस नदिया हर्ष की॥

    उठु मिहनति करु गाड़ु सिखर पर अपना उच्च निसनवा रे।

    अपन राज अब अपनइ देसवा मिहनति करउ किसनवा रे॥2॥

    भोरहरु होइगा पौ फाटति है चलु खेतवा की राह पर।

    बंजर खेतु परा जुगुजुगु ते हनि कै दे तुइ बाह रे॥

    झरुआ, दूब, मुचमुचा केरी हड्डी सारी तोरि दे।

    बबुरा की बनवाइ सरावनि ढेला-ढेला फोरि दे॥

    देखु सुर्ज मुस्काइ गगन मा अब डसाउ डसनवा रे।

    अपन राजु अब अपनइ देसवा मिहनति करउ किसनवा रे॥3॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 57)
    • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
    • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
    • संस्करण : 1991

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