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पत्नी

patni

मनीषा जोषी

और अधिकमनीषा जोषी

    पहले तो जाया करता था

    हफ़्ते में एक दो बार

    पर आया नहीं है

    अभी कई दिनों से।

    कहता था—

    खाना बहुत अच्छा बनाती है

    उसकी बीवी

    पर बहुत शर्मीली है बिस्तर में।

    मुझे वह चूम लेता था ऐसे

    कि देखी ही हो

    कोई औरत बरसों से।

    गालियाँ भी देता और कभी तो

    रो पड़ता था सेक्स के बाद।

    करते हैं कई ग्राहक ऐसा।

    मैं परिचित होने लगी थी

    उसके मुँह से हरदम आती

    लहसुन की गंध से भी

    पर क्यूँ नहीं दिखा अब वह महीने भर से?

    बीमार होगा?

    नौकरी छूट गई होगी?

    या फिर देहांत?

    कल रात एक अजीब सपना देखा मैंने—

    एक औरत अपने घर की परशाल में बैठी हुई थी

    उसके सामने पड़ा हुआ था ख़ूब सारा लहसुन

    और वह मंद-मंद मुस्काते हुए

    छील रही थी लहसुन के सफ़ेद छिलके।

    क्या वही थी मेरे ग्राहक की पत्नी?

    लहसुन की कली जैसी

    घबराई-सी—बंद और नाज़ुक

    हल्के सफ़ेद-पीले रंग की।

    सपने में भी घेर रही थी मुझे

    उसकी रसोई से रही

    लहसुन की अत्यधिक गंध।

    लहसुन के छिलके

    उसके आस-पास उड़ने लगे थे

    और वह उन छिलकों को पकड़कर

    एक पानी की कटोरी में डाले जा रही थी।

    पानी में डूब चुके लहसुन के छिलकों जैसा

    मेरा यह बेबस स्वप्न बस इतना ही था।

    मैंने देखी—एक पत्नी—स्वप्न में

    जो मैं कभी स्वयं नहीं बनी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा जोषी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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