पापा का ध्यान रखना

papa ka dhyan rakhna

सोमदत्त

सोमदत्त

पापा का ध्यान रखना

सोमदत्त

और अधिकसोमदत्त

    कौन सा गीत बज रहा है सुन रहा हूँ...

    तुम जो हमाऽऽरे गीऽत होऽते

    गीऽत ये मेरे प्रीऽत...

    किस उमर में पहुँच गया समय!

    किस गली में किस पेड़ की छाँव में!

    टुटही साइकिल के सहारे सपनों का संसार लाँघता

    कैसे आकुलता

    व्याकुलता की जाने किस हुमस की ज्वार भरी लहरों पे तैरता

    पैडल मारते सेकंड इयर में,

    पहुँच गया वह लड़का अपने प्यार की ख़तरनाक धार की

    ज़द में बंसी की धुन सुनता...

    इस वक़्त

    उस अधेड़ को बंसरी के उस मादक संसार से

    निकालना कठिन है उसे बाल-बच्चों के लिए भी

    जिनकी महतारी की आँखों में एक डोर है ताँत की,

    वही खींच सकती है उसे अपने पेड़ तक

    अगर चाहे

    इतनी यातना में फँसे अपने पुरुष को

    एक स्त्री जो बचा सकती थी वह पत्नी

    चार बच्चों की महतारी पति के प्रेमों से घृणा करती

    इस अद्भुत अगियार से

    साबुत जलते मुझको जो निकाल सकती थी साबुत

    वह स्त्री घर में नहीं थी

    अपने मायके गई थी

    रोज़-रोज़ की नफ़रत

    रोज़-रोज़ की हुज्जत

    रोज़-रोज़ घटती चाहत के कुएँ का जल ऊँचा करने के लिए

    सोया सोता जगाने के लिए

    छोड़ गई थी जो मुँह लटकाए बाल-बच्चे

    और उनके सहारे पति

    बच्चों को लिखती थी वो

    पापा का ध्यान रखना

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 122-124 (पृष्ठ 13)
    • संपादक : मनोहर वर्मा
    • रचनाकार : सोमदत्त

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