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पानी लाती स्त्रियाँ

pani lati striyan

पूजा जिनागल

पूजा जिनागल

पानी लाती स्त्रियाँ

पूजा जिनागल

और अधिकपूजा जिनागल

    स्त्रियाँ सभ्यताओं के सूर्योदय के पहले से पानी ला रही हैं

    वे इतना मुँह-अँधेरे उठकर पानी लाती हैं

    कि सूर्य की नींद भी उनके पानी भरने से टूटती है

    आकर उन्हें पीसना होता था मण भर अन्न

    और बनानी होती थी खिचड़ी पूरे परिवार के लिए

    वे पुरुषों के जगने से पहले से पानी ला रही हैं

    वे तब से पानी ला रही हैं

    जब रोटी ने अपना आकार ग्रहण नहीं किया था,

    प्रकृति नहीं हुई थी इतनी दूषित

    कि साँस लेना पड़े बम और बंदूक़ों से निकलते धुएँ में

    गाँव के किसी छोर पर बने कुएँ से पानी लाती स्त्रियाँ

    प्यास के ख़िलाफ़ जंग लड़ती हुई प्रतीत होती हैं

    वे कोस-कोस से पानी लाकर

    रेगिस्तान की शुष्कता पर विजय प्राप्त करती हैं

    उन्होंने माहवारी के समय उठते दर्द में पानी भरा

    एक हाथ में बच्चा तो दूसरे हाथ से घड़े को सँभाले

    पानी भरा।

    तीन-तीन घड़े एक साथ पानी भरा

    उन्होंने बीमारी में पानी भरा

    पुरुषों से पिटकर पानी भरा

    उन्होंने रोते हुए पानी भरा

    उन्होंने हर स्थिति में पानी भरा

    जैसे पानी भरना उनके जीवन जीने से भी ज़रूरी काम हो।

    उन्होंने मनुष्यों के साथ-साथ

    पशुओं के लिए भी पानी भरा

    पुरुषों को पानी भरती इन स्त्रियों का सौंदर्य

    उनकी पतली कमर में दिखा

    उन्होंने नहीं देखा घड़े पर घड़ा रखे हुए

    भारी वज़्न से दबी उनकी गर्दन को

    उन्होंने नहीं उठाया उनका वज़्न

    पानी भरना उन्होंने स्त्रियोचित काम ठहराया,

    अपने पुरुषार्थ के ख़िलाफ़ समझा सिर पर घड़ा उठाना

    स्त्रियों ने कितनी सभ्यताओं की प्यास बुझाई,

    कितनी सभ्यताओं को अन्न पीस कर राँधी खिचड़ी

    पर रखा ज़िंदा

    इसका हिसाब नहीं है

    किसी भी सभ्यता के पास।

    रेगिस्तान के वे सुदूर इलाक़े

    जो छुट गए हैं सभ्यता की दौड़ में पीछे

    वहाँ आज भी स्त्रियाँ अनवरत ला रही हैं पानी

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूजा जिनागल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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