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पागलपन का मंद्र निषाद

pagalpan ka mandr nishad

आनंद बहादुर

अन्य

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आनंद बहादुर

पागलपन का मंद्र निषाद

आनंद बहादुर

और अधिकआनंद बहादुर

    मैं पागलपन को 

    एक गीत की तरह रचता हूँ

    धीरे-धीरे मंद्र मध्यम से शुरू कर

    तीव्र तार के कोमल धैवत तक

    उसका विस्तार करता हुआ

    एक आवेग में झटके से

    षड्ज की ओर आना चाहता हूँ

    मेरे चारों ओर नृत्यरत प्रतिच्छायाएँ

    सहजता से छंद में आना चाहती हैं

    कि तभी—

    पागलपन के महीन तारों पर फिसलता हुआ संगीत

    समझदारी के कोलाहल में उलझ जाता है 

    इन कँटीली झाड़ियों से निकल कर

    शांत षड्ज जैसी भीगी रातों को

    पागलपन अंदर तक गहरे पैठता हुआ

    धीमे-धीमे संतूर की तरह झनझनाता है

    ऐसे में कोई सोच एक झटके में 

    किसी नए नरक के द्वार खोलती है

    जिनके अंदर क्षमा, भिक्षा, घृणा और प्रीत—

    यह सब, मगर

    वहीं कहीं दुबका हुआ मिलता है 

    पागलपन का मंद्र निषाद!

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बहादुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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