ऑनलाइन युग में युवा कवि

online yug mein yuwa kawi

देवेश पथ सारिया

देवेश पथ सारिया

ऑनलाइन युग में युवा कवि

देवेश पथ सारिया

और अधिकदेवेश पथ सारिया

     

    एक

    मुश्किल

    इस युग में जितना आसान है
    कवि बनना
    उससे भी ज़्यादा सहूलियत भरा
    किनारे कर दिया जाना

    युद्ध के बाद
    भूखी भीड़ 
    टूट पड़ी है
    आसमान से बरसती सहायता पर

    दौड़ में पिछड़ जाना
    रौंद दिया जाना
    सहज संभाव्य परिणति हैं

    कवि बने रहना
    पहले कभी इतना कठिन नहीं रहा।

    दो

    नए युवा कवि

    कई अच्छे युवा कवि
    लीक से हटकर करते हैं शुरुआत
    फिर बन जाते हैं लकीर के फ़क़ीर
    अपने ही नक़्शे में खो जाते हैं वे

    अधिकांश वेब सीरीज़ का
    अच्छा होता है सिर्फ़ पहला सीज़न ही।

    तीन

    सफल युवा कवि-1

    पुरस्कार सबके लिए नहीं बने
    वे सब में नहीं बँटे

    नोटिस हो जाना ही रखता है मायने
    यह एक मध्यांतर है

    मध्यांतर के बाद
    भटक जाती हैं रास्ता 
    अधिकतर फ़िल्में।

    चार

    सफल युवा कवि-2

    जिनकी गाड़ी दौड़ती रही शानदार  
    पश्चात मध्यांतर के भी
    उनकी राह में है रोड़ा एक ही
    उनका अपना अहंकार

    जैसे 11वीं कक्षा में आते ही
    मेरे क़स्बे के मुकेश कुमार
    लिखने लगते थे अपना नाम : एम. के.
    और साइकिल चलाना 
    तौहीन समझते थे अपनी।

    पाँच

    सफल युवा कवि-3 

    सफल होकर भी रहे विनम्र 
    वे मनुष्य बने रहे 
    उतरे खरे 
    कविता की अंतिम कसौटी पर

    उन्हें विदित है सूत्र :
    परिष्करण अंतहीन प्रक्रिया है 

    छह

    पुरस्कृत कवि

    वे जितना सीखते हैं
    शुक्रिया अदा करना
    उससे ज़्यादा गालियाँ हज़म करना

    कमज़ोर पाचन शक्ति वाले
    पुरस्कार लेने से मना कर दें। 

    सात

    तुर्शी

    तुर्शी गुण है 
    बहुधा उस समय चर्चा में आए कवि का
    जब सोशल मीडिया भेड़चाल नहीं था।

    आठ

    की-वर्ड

    स्त्री, प्रेम और बुद्ध
    सोशल मीडिया पर सफल
    कविता के की-वर्ड हैं।

    मैं पहली बार कर रहा
    तथागत का उपयोग। 

    नौ

    कुलीन कवि

    कुलीन कवि
    प्रेमी, प्रेमिका और बुद्ध नहीं लिखते
    वे लिखते हैं
    प्रेयस, प्रेयसी और तथागत। 

    दस

    संकरित कवि

    बरबस ही उनके मुँह से निकला जाता है :
    एक बार आपकी तालियों की गड़गड़ाहट मुझ तक पहुँचे!

    मंचीय कविता में उन्होंने बघार लगाया है
    इधर-उधर से की गई अच्छे कवियों की नक़ल का
    इतिहास में उन्हें संकरण का श्रेय दिया जाएगा

    उन्हें अमरत्व की चाह भी है
    मूल्यांकन के लिए तैयार भी नहीं वे
    उनकी श्रवण सामर्थ्य में नहीं ये शब्द :
    खेद सहित वापस

    ईमानदार संपादकों को भी
    वे कहते हैं ख़ेमाबाज़!

    स्रोत :
    • रचनाकार : देवेश पथ सारिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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