Font by Mehr Nastaliq Web

निवेदिता

niwedita

अनुवाद : श्रीवत्स करशर्मा

चक्रधर राउत

अन्य

अन्य

चक्रधर राउत

निवेदिता

चक्रधर राउत

और अधिकचक्रधर राउत

    इस माटी की इतनी गंध

    छंद बनके बह जाने पर—

    उसकी मधु महक से

    मेरा हृदय कस्तुरी में रूपातंर होता

    उसी महक से ख़ुद मैं मुग्ध हो

    उसे ही ढूँढता फिरता

    इस धरती के मुक्त्ता-शहर में!

    सीप का सपना बन के

    समर्पित वह ख़ुद मुझमें

    बहुत पहले से!

    इसलिए निचोड़ देता पद्म-मधु

    ख़ुशी मन से

    विह्वलित उसके ऊष्म अधर से

    पाने की तृप्ति से वह

    तितली के प्यासे अधर में!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेघमुक्त मन की कविता (पृष्ठ 54)
    • संपादक : दयानिधि राउत
    • रचनाकार : चक्रधर राउत
    • प्रकाशन : प्राणीमंगल समिति, भुवनेश्वर
    • संस्करण : 2000

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY