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नित नया निर्माण होगा...

nit naya nirman hoga. . .

ज्ञानराज माणिकप्रभु

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ज्ञानराज माणिकप्रभु

नित नया निर्माण होगा...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

और अधिकज्ञानराज माणिकप्रभु

    ध्वंस के भय से किंचित् भी स्थगित अभियान होगा।

    जब तलक हैं प्राण तन में नित नया निर्माण होगा॥

    ध्वंस करना नियति का है कार्य वह करती रहे, मैं

    ध्वंस में भी सृजन को साकार करना जानता हूँ।

    वंश मेरा है भगीरथ का यह भूलो कभी तुम

    यत्न से प्रतिकूल का प्रतिकार करना जानता हूँ।

    रात्रि के विश्राम के हित है रुकी यह विजययात्रा

    प्रात होते ही यहाँ से कल पुनः प्रस्थान होगा॥

    नाश की है आयु कितनी? मात्र क्षण भर! किंतु सोचो

    कल्प मन्वंतर युगों तक सृजन की यह प्रक्रिया है।

    नाश कितना भी बली हो सृजन की क्षति कर सकता

    सृजन ने उसको पराजित ही सदा रण में किया है।

    नाश को निज कृत्य के वैतथ्य का है बोध सम्यक्

    सृजन के आनंद उत्सव में अब व्यवधान होगा॥

    क्यों हुआ कैसे हुआ यह व्यर्थ की परिकल्पना है

    कब हुआ किसने किया यह निष्प्रयोजन जल्पना है।

    जो हुआ दायित्व उसका मैं स्वयं स्वीकार करता

    और प्रभु की भी यही थी योजना यह भावना है।

    हो गया सो हो गया अब सोचने में लाभ क्या है

    ढह गई जो भित्ति है, उस भित्ति का उत्थान होगा॥

    प्रभु स्वयं कर्ता अकर्ता अन्यथाकर्ता सबल हैं

    पास उनके मुझ सरीखे शत सहस्रों उपकरण हैं।

    दास हूँ मैं, लाभ की या हानि की चिंता मुझे क्यों

    हृत्कमल में जब प्रतिष्ठित प्राण बनकर श्रीचरण हैं।

    मान या अपमान मुझको हैं प्रभावित कर सकते है

    मुझे विश्वास रक्षित 'ज्ञान' का अभिमान होगा॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्ञानराज माणिकप्रभु
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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