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निराला के प्रति

nirala ke prati

शमशेर बहादुर सिंह

अन्य

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शमशेर बहादुर सिंह

निराला के प्रति

शमशेर बहादुर सिंह

और अधिकशमशेर बहादुर सिंह

    भूल कर जब राह—जब जब राह... भटका मैं

    तुम्हीं झलके, हे महाकवि,

    सघन तम की आँख बन मेरे लिए,

    अकल क्रोधित प्रकृति का विश्वास बन मेरे लिए—

    जगत के उन्माद का

    परिचय लिए,—

    ओर आगत-प्राण का संचय लिए, झलके प्रमन तुम,

    हे महाकवि! सहजतम लघु एक जीवन में

    अखिल का परिणय लिए—

    प्राणमय संचार करते शक्ति औ’ छवि के मिलन का हास मंगलमय;

    मधुर आठों याम

    विसुध खुलते

    कंठस्वर से तुम्हारे, कवि,

    एक—ऋतुओं के विहँसते सूर्य!

    काल में (तम घोर)—

    बरसाते प्रवाहित रस अथोर अथाह!

    छू, किया करते

    आधुनिकतम दाह मानव का

    साधना स्वर से

    शांत-शीतलतम।

    हाँ, तुम्ही हो, एक मेरे कवि :

    जानता क्या मैं—

    हृदय में भर कर तुम्हारी साँस—

    किस तरह गाता,

    (ओ विभूति परंपरा की!)

    समझ भी पाता तुम्हें यदि मैं कि जितना चाहता हूँ,

    महाकवि मेरे!

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुछ कविताएँ व कुछ और कविताएँ (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : शमशेर बहादुर सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1984

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