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नेरुदा के मानिंद

neruda ke manind

संदीप तोमर

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संदीप तोमर

नेरुदा के मानिंद

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    जब तुम्हारा चेहरा

    गुस्से से तमतमा रहा होगा

    मैं तुम्हे सलाह दूँगा

    एक गिलास पानी पीकर

    शांत हो जाने की 

    या फिर तुम दस तक गिनती गिनकर 

    शांत हो जाओगे

    उस शांति में हम 

    खोजेंगे वह जगह जहाँ 

    जहाँ उस शांति को कायम रखा जा सके,

    कम से कम एक जगह

    हम खोजें जहाँ मशीनों का शोर हो

    जहाँ भाषा में विचारों का 

    आदान प्रदान हो

    मात्र चंद पलों के लिए 

    हम अख़्तियार कर लें 

    मौन की भाषा 

    वो बेहतरीन पल 

    जब भीड़ होगी

    जहन की जादूगरी होगी,

    हम सब एक साथ 

    मौन अख़्तियार कर लेंगे

    एक ऐसा संसार जहाँ

    किसी हिरन को इंसान या शेर से 

    शिकार होने का भय हो

    और मछलियाँ घूम सकें 

    तालाब-समुंदर-नदीं में

    पकड़ें जाने के भय से

    गाय-भैंस-बकरियाँ हो जाएँ

    बेफ़िक्र अपना दूध दुहे जाने से

    इंसान भी हो जाएँ बेख़ौफ़ 

    एटमी शक्ति के विनाश से

    आओ हम चलें उस सुनसान में,

    जब आदमजात हो जाए शांत 

    देशों की सीमाएँ हो जाएँ मुक्त

    बंदूक की नोंक से

    समुंदर से नमक बनाता मजदूर 

    देख पाए हाथों का यूँ गलना

    युद्ध की आशंका से घिरा

    सीमा पर तैनात जवान देखें भय 

    घर पर राह देख रहे 

    अपने मासूम बच्चों की आँखों में,

    आओ हम पहन लें वो पोशाकें जो 

    हो जाएँ मुक्त हर एक भेदभाव से,

    जो सब मैं कह रहा हूँ 

    हो सकता है इसे आप समझ लें कोई बकवास 

    या बासी हुई तमाम संकल्पनाएँ 

    लेकिन सच कहता हूँ दोस्तों

    ये सब जीवन का फ़लसफ़ा है 

    जिसका मृत्यु से कोई लेना-देना नहीं, 

    दोस्तों ओशो कहता था—मैं मृत्यु सिखाता हूँ

    हम पहले सही से जीवन जीना 

    सीख लें, मृत्यु को तो एक दिन धरती ने

    सिखा ही देना है,

    हाँ तो मैं वही कह रहा था

    जो एक दिन नेरुदा कह रहा था

    उसने कहा था—काश हम इतने मन से 

    ज़िंदगी की भाग दौड़ में शामिल होकर 

    कभी रूककर कुछ नहीं करते 

    तब शायद एक चुप्पी 

    हमारे इस दुःख को थाम लेती 

    ठीक वही बात मैं कह रहा हूँ

    ध्यान से सुनो 

    काश हमने समझा होता 

    सिद्दत से साथ, विकास का हर पैमाना

    और उतने ही मन से 

    इस्तेमाल किया होता मानव मन को 

    तो धरती ने ये रूप धरा होता

    इसीलिए दस तक गिनती गिनो और 

    शांत हो जाओ

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप तोमर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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