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नारंगी की ढेरी

narangi ki Dheri

शिव कुमार गांधी

अन्य

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शिव कुमार गांधी

नारंगी की ढेरी

शिव कुमार गांधी

और अधिकशिव कुमार गांधी

    पूरी शाम में नारंगी की ढेरी कैसी हुई जाती है

    लड़का देखता है बार-बार जल्दी-जल्दी बेक़ाबू-सा इधर-उधर

    एक पहाड़ गुज़रता है

    उसके पीछे उगता हुआ सूरज उस पूरी शाम में ऑयल पेंट किया हुआ

    ट्रक के पीछे के पहाड़ के पीछे जाता हुआ उधर,

    जहाँ पहाड़ दिख रहे हैं पूरी शाम में बहुत गहरे भूरे

    गहरी नारंगी-सी नारंगी

    गहरा ताँबई जिस पर आकाश की गहरी नीली परछाई,

    जो देखता है इस बार

    उस गुज़रते ट्रक के पीछे के पहाड़ के पीछे बने सूरज को

    जाती है ट्रक की आवाज़ धीरे गहरे भूरे पहाड़ में धँसती हुई

    मैं अभी सूरज जैसी नारंगी में उलझा हुआ

    हूँ इस पूरी शाम में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिव कुमार गांधी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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