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नरक के बारे में सोचते हुए

narak ke bare mein sochte hue

अनुवाद : सुरेश सलिल

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

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नरक के बारे में सोचते हुए

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    नरक के बारे में सोचते हुए, मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा।

    मेरे भाई शेली को लगा, कि वह जगह

    लंदन सिटी से बहुत मिलती-जुलती होगी,

    मैं लंदन में नहीं, लॉस एंजिल्स में रहता हूँ

    लिहाज़ा मुझे नरक के बारे में सोचते हुए

    लगा कि वह काफ़ी-कुछ लॉस एंजिल्स जैसा होगा।

    मुझे कोई संदेह नहीं कि

    नरक में भी वैसे मनोहर उपवन होंगे

    उनमें दरख़्तो-जितने बड़े-बड़े फूल खिलते होंगे

    जो अगर बहुत महँगे पानी से सींचे जाएँ

    तो बिना किसी रू-रियायत के मुरझा जाएँ।

    और फल-मंडियों में फलों के ऊँचे-ऊँचे ढेर लगे होंगे

    हालाँकि उनमें ख़ुशबू होगी, स्वाद।

    और अंतहीन क़ाफ़िले होंगे : परछाईं से भी हल्की कारों के

    जो ऊलजुलूल विचारों से भी तेज़ भागती हैं।

    उन चमचमाती कारों में ख़ुशमिज़ाज दीखते लोग होंगे

    जो कहीं से आते हैं, उन्हें कहीं जाना है।

    और मकान होंगे, सुखी लोगों के रहने के लिए बनाए गए,

    लिहाज़ा, आबाद होने के बावजूद, ख़ाली-ख़ाली-से खड़े होंगे।

    नरक में मकान, अलावा इसके, बिल्कुल ही भद्दे नहीं हैं

    लेकिन दर-ब-दर किए जाने का डर

    बँगले वालों में भी

    झोपड़पट्टी वालों से कमतर नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 158)
    • रचनाकार : बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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