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नदी

nadi

अनुवाद : आग्नेय

हावियर हिरॉद

अन्य

अन्य

और अधिकहावियर हिरॉद

     

    एक

    मैं नदी हूँ चौड़े पत्थरों पर उतरती

    कठोर चट्टानों से टकराते बहती

    मेरा पथ आँधी ने खींच रखा है

    मेरे इर्द-गिर्द दरख़्तों ने

    बारिश का कफ़न ओढ़ रखा है

    मैं नदी हूँ उतरती हूँ

    जब कभी कोई सेतु अपनी

    वक्रताओं से मुझे प्रतिबिंबित करता

    तो मैं और अधिक उग्रता से उतरती हूँ

     

    दो

    मैं नदी हूँ, एक नदी, एक नदी

    सुबह की तरह…

    कभी-कभी मैं कोमल और दयावान

    उर्वर घाटियों में से आहिस्ता-आहिस्ता बहती

    मैं मवेशियों और भले लोगों को

    पीने देती हूँ अपना पानी

    जितना भी वे पीना चाहते हैं

    दिन में बच्चे दौड़ते हुए आते हैं मेरे पास

    और रात में सिरहते हुए प्रेमी

    मेरी आँखों में निहारते हैं

    और स्वयं डूब जाते हैं

    मेरे आत्मिक जल के निपट अंधकार में

     

    तीन

    मैं नदी हूँ

    लेकिन कभी-कभी बर्बर और ताक़तवर

    कभी-कभी जीवन या मृत्यु के प्रति

    मेरा कोई आदर नहीं होता

    प्रचंड प्रपातों की तरह गिरती

    मैं पत्थरों को बार-बार पीटती

    और उनको चकनाचूर कर देती

    जानवर भागते, वे भागते

    जब मैं उनके खेतों को बाढ़ से डुबो देती

    जब मैं उनकी तलहटियों में छोटे-छोटे कंकड़ बो देती

    जब मैं उनके घरों और चरागाहों को बाढ़ के पानी से भर देती

    जब मैं उनके दरवाज़ों और उनके हृदय,

    उनकी देह को जल आप्लावित कर देती

     

    चार

    और यह सब होता जब मैं तीव्र गति से

    उनके हृदय तक पहुँच जाती

    और रक्त में घुलने लगती

    तो मैं उनके अंतर्तम में समा जाती

    तब मेरी उग्रता शांत हो जाती

    और मैं एक दरख़्त में बदल जाती

    और अपने पर एक मुहर लगा देती दरख़्त हो जाने की

    और पत्थर की तरह ख़ामोश हो जाती

    और बिना कांटे वाले गुलाब की तरह निःशब्द हो जाती

     

    पाँच

    मैं नदी हूँ

    मैं सनातन आनंद की सरिता हूँ

    मैं पड़ोसी झोकों को महसूस करती हूँ

    मैं अपने चेहरों पर हवा को महसूस करती हूँ

    अपनी यात्रांत तक

    जो पहाड़ों, नदियों, सरोवरों, मैदानों को पार करती

    अंतहीन हो जाती हूँ

     

    छह

    मैं यात्रा करती एक नदी हूँ

    तटों, दरख़्तों और शुष्क पत्थरों के साथ-साथ

    यात्रा करती एक नदी हूँ

    मैं नदी हूँ

    जो तुम्हारे कानों, तुम्हारे दरवाज़ों

    तुम्हारे खुले दिलों में उतरती हूँ

    मैं नदी हूँ जो यात्रा करती है

    घास के मैदानों, पुष्पों और कोमल गुलाबों के बीच

    मैं नदी हूँ जो यात्रा करती है

    सड़कों, धरती, भीगे हुए आसमान के साथ-साथ

    मैं नदी हूँ जो यात्रा करती है

    घरों, मेज़ों, कुर्सियों के बीच

    मैं नदी हूँ जो यात्रा करती है

    मनुष्यों के अंतर्तम में

    दरख़्त, फल, गुलाब, पत्थर, हृदय, दरवाज़ा

    हर चीज़ को उलट-पुलट करती

    मैं नदी हूँ

    यात्रा करती हुई

     

    सात

    मैं नदी हूँ मध्याह्न में

    लोगों के लिए गीत गाती

    मैं उनकी समाधियों के समक्ष गीत गाती हूँ

    और मैं अपना चेहरा पवित्र

    स्थलों की ओर मोड़ देती हूँ

     

    आठ

    मैं नदी हूँ

    मैं रात्रि हो जाती हूँ

    मैं बहती जाती हूँ गहरे गड्ढों को भरती

    मैं उन भूले-अनजाने गाँवों से

    उन शहरों से जो लोगों से भरपूर हैं

    होती हुई बहती जाती हूँ

    मैं नदी हूँ

    मैं घास के मैदानों से बहती हूँ

    मेरे तटों पर, दरख़्तों पर कपोतों की रंगरेलियाँ हैं

    दरख़्त मेरे साथ गाते हैं

    दरख़्त मेरे परिंदे वाले हृदय के साथ गाते हैं

    नदियाँ मेरे हाथों में गाती हैं

     

    नौ

    वह घड़ी आएगी

    जब मुझे विलीन हो जाना होगा सागर में

    अपने साफ़ पानी को मटमैले पानी में मिश्रित कर देना होगा

    मुझे अपने प्रदीप्त गीत को चुप करा देना होगा

    और मैं जिस तरह हर दिन की सुबह को

    हैलो बुदबुदाती थी, उसको चुप करा देना

    मैं अपनी आँखों को सांगर से धोऊँगी

    और एक समय आएगा

    जब उन विशाल सागरों में

    अपने उर्वर खेतों को देख नहीं सकूँगी

    मैं अपने हरे दरख़्तों को

    अपनी पड़ोसी बयारों से

    अपने स्पष्ट आकाश को, अपने गहरे सरोवर को

    अपने सूर्य, अपने मेघों को देख नहीं पाऊँगी

    मैं कुछ भी नहीं देख सकूँगी

    उस विराट नीले स्वर्ग के अतिरिक्त

    जहाँ प्रत्येक वस्तु विलुप्त हो जाती है

    जल के व्यापक विस्तार में

    जहाँ एक गीत या एक दूसरी कविता का

    कोई और अर्थ नहीं होगा

    इसके सिवाय एक छोटी-सी नदी

    या एक सशक्त सरिता मुझसे मिल जाएगी

    मेरी नई प्रदीप्त जलधाराओं से

    मेरी नई बुझती जलधाराओं से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : हावियर हिरॉद

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