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ना सोंचेउ जेल का चली

na soncheu jel ka chali

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

ना सोंचेउ जेल का चली

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    हेनइ लीन्हेउ निपटाइ बवाल

    ना सोचेउ कबहूँ जेल का चली

    नहि तौ हुइ हइ सबु हालु बेहाल

    ना सोचेउ कबहूँ जेल का चली

    कदम धरति खन दौर सिपाही जस दौरति हैं पण्डा

    फिरि आवति हइँ लाल पियरुआ फटकारति भए डण्डा

    अँधरा अइस टेकाए जइहउ पइहउ कम्बल थाली

    पहुँचि मुलहिजा अगवानी मा खइहउ थोरी गाली

    फिरि चलाए जइहउ दुलहिनि वाली चाल

    ना सोचेउ कबहूँ जेल का चली

    काम लेइँ राइटर साहेब तबहूँ जूना अस अइठैं

    चलइ गरिबवा पर डेण्डा मुल रुपया वाले बइठैं

    पहुँचि गिर्द मा रोगु दागु सब घरके नाउ लिखाओ

    नित्य क्रिया सब भूलि गयी अब आँसू बैठि बहाओ

    हाता करवावइ बदि घूमति हैं दलाल

    ना सोचेउ कबहूँ जेल का चली

    देखेउ भइया सोंचि-सोचि के कुछु बिन मौतइ मरिहइँ

    दुनियादारी करति रहइँ तइ पहरेदारी करिहइँ

    खानउ मिलिहइ अइस हियाँ सब होई चूर जवानी

    भण्डारा की दरियम पानी सब्जिउ चाय मा पानी

    पानिम ढूढ़े ना मिलति हइ दाल

    ना सोचेउ कबहूँ जेल का चली

    चारिउ गिर्दा लूटि मची हइ खूब लगावँइ चूना

    कन्टीनउ मा हइ सब कुछ हर माल रेट हइ दूना

    अधिकारिउ सब रंग बदलति हैं रुख देखति हइँ जइसा

    रहइ खाइ मा पइसा ढूढ़इ मुलउकाति मा पइसा

    और कुछु कहि दीन्हेउ तौ खइची जइहइ खाल

    ना सोचेउ कबहूँ जेल का चली

    पइसा वाले खेलि जुआँ का पइसा खूब उड़ावइँ

    इनइ सिपाही चलिके गाँजा चरसु भाँग दइ आवइँ

    चूल्हा जलइ बैरिकइ महियाँ खूब लगावइँ छौंका

    बच्चा पालइँ मौज उड़ावइँ जस देखइँ वइ मौका

    पइसा वालेन के कटति हइँ माल

    ना सोचेउ कबहूँ जेल का चली

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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