हम अपने घोंसलों में चाँद रखते हैं

hum apne ghonslon mein chand rakhte hain

दीपक जायसवाल

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हम अपने घोंसलों में चाँद रखते हैं

दीपक जायसवाल

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    चाँद हर बार सफ़ेद नहीं दिखता

    उनींदी आँखों से बहुत बार वह लाल दिखता है

    मेरे दादा जब बहुत देर रात धान काटकर आते

    उनका हँसिया चाँद की तरह दिखता।

    बहुत बार दादा का पेट इतना पिचका होता कि

    उनकी दोनों तरफ़ की पसलियाँ

    चाँद की तरह दिखतीं।

    मेरी माँ की लोरियों में चाँद

    अक्सर रोटी के पीछे-पीछे आता

    और बहुत बार आधी पड़ी रोटी

    चाँद की तरह दिखती।

    ठीक-ठीक याद नहीं शायद

    मेरे दादा जैसे-जैसे बूढ़े होते गए

    उनकी कमर चाँद की तरफ़ नहीं

    जमीन की तरफ़ झुक आई

    लेकिन अर्थी पर सोए दादा

    हुबहू चाँद की तरह दिखे।

    लोग कहते हैं उस रोज़

    सारे खेतों में धान की बालियाँ

    उनके दुःख और सम्मान में

    थोड़ी-थोड़ी-सी आसमान की तरफ़ नहीं

    ज़मीन की ओर झुक आईं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : दीपक जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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