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मिला सभी कुछ

mila sabhi kuch

अनुवाद : रमेश कौशिक

अलेक्सांद्र त्वारदोव्स्की

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और अधिकअलेक्सांद्र त्वारदोव्स्की

    कोई कसर नहीं छोड़ी है

    मुझको देने में जीवन ने

    इसकी उदारता ने किंचित् भी

    द्वेष पाला मुझसे

    हर चीज़ मिली बहुतायत से

    यह सफ़र कटेगा बड़े मज़े से

    मातृ-भूमि के गीत मिले गाने को

    कथा-कहानी भाव-भरी यादों को

    त्यौहार पुराने पादरियों वाले

    और नए फिर एक दूसरे राग ढले

    दूरस्थल के

    बहुत पुराने मौसम वे सरदी वाले

    जहाँ पार जंगल से आतीं मधुर स्लेज़-आवाज़ें

    चौंका करता जो दुनिया की

    नयी-नयी ईजादों से

    सरिता सागर जल के सोते

    द्वारों के बाहर फूटे

    बिना बताए

    दादुर ने दल-दल में अंडे दे डाले

    रिसती राल चीड़ तरुओं से

    गरमी का तूफ़ान कुकुरमुत्ते औ’ बेरी

    ओससनी घसियायी वह पगडंडी...

    आनंद और अनुभव वे चरवाहे के

    प्यारी पुस्तक के पन्नों पर भरे अश्रु वे

    दर्द और कड़वाहट जीवन के प्रभात के

    प्रतिशोधों के बचकाने वे सपने

    धूल भरे कपड़े पैरों से नंगे

    विद्यालय को छोड़ भागने के दिन

    हर चीज़ बहुत थी

    पिता-गेह के अँधकार में

    एक भयानक निर्धनता भी शामिल थी...

    कोई कसर नहीं छोड़ी है

    मुझको देने में जीवन ने

    इसकी उदारता ने किंचित् भी

    द्वेष पाला मुझसे

    अच्छा स्वास्थ्य दिया है

    दीर्घ समय के लिए शक्ति का स्रोत दिया है।

    प्रथम बार ही मिली मित्रता ऐसी

    ऐसा प्रेम मिला है

    नहीं किसी को कभी

    दूसरी बार मिला है

    एक मूर्ख के मंसूबे यश के

    मीठे ज़हर वाक्य-शब्दों के

    घर पर खिंची हुई मदिरा का

    पात्र बड़ा-सा

    गायक विज्ञजनों के बीच उड़ेला

    भूतकाल की या मौजूदा सरकारों पर

    पाप-पुण्य पर

    भाषण देते बहसें करते गंभीर बने

    उत्तेजित हो कटु हो जाते जो...

    मैं साथ रहूँ हरदम जनता के

    उसको जानूँ समझूँ जो कुछ उस पर बीता

    सन् तीस या कि फिर इकतालिस

    या अन्य वर्ष ने

    नहीं दिया है ऐसा मौक़ा

    जो मुझको कुछ रहे परेखा...

    मेरे उर के भीतर सब कुछ इतना संचित

    शीत-ताप के चरम बिंदु को

    सह सकने में मैं समर्थ हूँ

    जीवन-पथ पर

    छोटी-मोटी विपदाओं का

    आघातों का

    कोई ख़ास महत्त्व नहीं मुझको लगता है

    मुझे पता जब

    ख़ुश हो लेने से ही कोई

    जीवन पार नहीं होता है

    बिना किए संघर्ष

    बैठकर दूर

    देखने से ही काम नहीं चलता है

    जीवन में तो सारा बोझा

    अपनी स्वयं पीठ पर होता

    अपनी मेहनत के निशान पड़ते हैं

    अपना तीखा स्वेद बहा होता है

    जिन चीज़ों की आई तुम पर ज़िम्मेवारी

    जिनका निर्माण तुम्हें करना

    किंचित् क़र्ज़ा मानवता का निपटाने को

    केवल तरुणों के लिए नहीं

    श्रम सबके लिए ज़रूरी है

    अभी सामने समय कठिन है

    किंतु मैं भयभीत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 176)
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र त्वारदोव्स्की
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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