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मेरा ओतप्रोत गायपना

mera otaprot gayapna

अनुवाद : चंद्रकांत बांदिवडेकर

मंगेश पाडगाँवकर

अन्य

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मंगेश पाडगाँवकर

मेरा ओतप्रोत गायपना

मंगेश पाडगाँवकर

और अधिकमंगेश पाडगाँवकर

    घर के सामने आँगन में गाय खड़ी रहे

    शांति से घर की ओर प्रेम से देखती हुई

    पागुरझाग से मुँह के किनारे, बिना आवाज़

    ओतप्रोत आँखों में समूचा घर अटका हुआ

    यह मूड मेरे मन में इस क्षण

    बिल्कुल उस गाय की भाँति गहन,

    अबोला

    आस-पास की दुनिया मेरी आँखों में

    बिलकुल ऐसी ही रुँधी हुई

    ओतप्रोत

    यह सब हर दिन दिखने वाला आँखों को

    और फिर भी मेरा देखा हुआ,

    यह दुनिया धागा बुनती है आज प्राणों से

    एक नया नाता, नया प्रारंभ, नया होना

    खिड़की पर बैठकर काँव-काँव

    करने वाला कौआ भी

    ऐसा सुशील लग रहा है यार कि पूछो मत!

    आम के पेड़ का ठिगना बौना क़द

    काला कोलतार का रास्ता भी सट रहा है

    प्राणों से

    इस सबकी ओर पेन्हा कर देखता हुआ यों

    भर-भर कर खड़ा मैं इस क्षण

    मेरा ओतप्रोत गायपना

    मुझे महसूस हो रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता मनुष्यों के लिए (पृष्ठ 70)
    • रचनाकार : मंगेश पाडगांवकर
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2006

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