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मेघदूत : बीसम शताब्दी

meghdut ha bisam shatabdi

नीरजा रेणु

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नीरजा रेणु

मेघदूत : बीसम शताब्दी

नीरजा रेणु

और अधिकनीरजा रेणु

    यक्ष विरहातुर

    गगनमे

    सघन घनकेँ देखि

    अप्पन पीड़केँ नहि रोकि सकलै।

    हृदयकेँ टीस स्वरमे

    बान्हि कऽ बाजल जलद सँ

    बन्धु! हम्मर मीत तोँ

    लऽ जो समदिया ओइ प्रिया लेल

    जे ने हमरा पाबिकेँ संग

    भऽ रहलि व्याकुल अहर्निश।

    सुन्दरि, सुकुमारि तरुणी

    चन्द्रमा सन वदन जकरा

    चकित हिरणी प्रेक्षणा

    दशन दाड़िम बीज सन छै

    सघन शिखि केर पाँखि सन छै

    अलक।

    अलका निवासिनि

    अछि हमर अनुपम प्रियतमा।

    बुझा देबही तोर प्रियतम

    शाप केर दिन गनि रहल अछि

    चित्र तोहर राखि हियमे

    मिलनक आशा सजाकऽ

    जी रहल अछि।

    घन घनन कऽ चलि पड़ल

    द्रुतगतिक संगे

    बोन पाँतर पार करैत

    आबि गेल अलकापुरीमे।

    गेल विरहिणि नारिसँ

    कहै लेल

    जे तोर प्रियतम केर मधुर संवाद लऽकऽ

    हम एलहुँ अछि।

    किन्तु विरहणी केर स्वरूपक

    कारणें नहि चिन्हल सत्वर

    ने छलि सुन्दरि, सुकोमल, सौम्य तरुणी।

    भूख केर ज्वालासँ जरिकऽ

    रूपसी केर रूप सुन्दर

    मरि चुकल छल।

    बाट तकैत प्रियतमक नहि

    ठाढ़ छलि आर्त प्रतिपल

    मेघ सँ सम्वाद सुनबा लेल

    ने निज मुख उठौलक

    मग्न छलि

    नयनकेँ नीचा झुकौने।

    लिखि रहल छलि

    पियाके पाँती जतन सँ।

    आउ नहि अहाँ एतय प्रियतम!

    एतऽ भेटब भेल दुष्कर

    अन्न जल।

    गरीबीसँ गलित तन देखि हम्मर

    अहाँ कम्पित हैब निश्चय!

    ने कम्पन स्नेह केर

    रोमाञ्च मादकताक रहतै

    भूख केर संत्रास सँ

    सभटा रहत ओ।

    तेँ अहाँ एकसरे आनन्दित रहू प्रिय!

    यदि तैयो नेह

    हमरा हेतु हियमे रहय कनियो

    तँ कने ध्यान रखबै।

    भूख से हम जाइ ने मरि

    तेँ अहाँ परदेसमे रहि

    काज अधिकाधिक उठाकऽ

    मात्र कैंचा पठा दितियै।

    मेघ विचलित भ' उठल

    की यैह अलका केर परी थिक

    कतय एक्कर सेज सुन्दर

    भवन रंगल

    कतय मन्दाक्रान्ता केर ध्वनि

    मनोहर वीण भुजपर

    कतय उन्नत वक्ष केर

    सौन्दर्य सुखकर!

    भूमिपर

    आकाश केर नीचाँ

    पड़लि

    मैल, फाटल

    एक नूआ टा लपेटने

    विवशता केर श्वास आ' निःश्वास लऽ केँ

    जी रहल छलि।

    हृदय हाहाकार घनके कऽ उठल

    नक्षत्र कानल मूक स्वरसँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आगत क्षण ले (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : नीरजा रेणु
    • प्रकाशन : श्री शेखर झा
    • संस्करण : 1997

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