...चूँकि वह सब है किसी ऐसी भाषा में जिसे मैं नहीं जानती
—ल्यूइस कैरल, थ्रू द लुकिंग ग्लास
मैं सुनती हूँ दुनिया का सिसकना एक विदेशी भाषा की तरह
—सेसीलिया मेइरेलीज़
इस भूमिका को निभाने के लिए वे प्रवासी हो गए
—ओंरी मीशो
किसी ने मार डाला है कुछ
—ल्यूइस कैरल, थ्रू द लुकिंग ग्लास
एक
यह छोटी नीली गुड़िया दुनिया में मेरी दूत है
बग़ीचे में हो रही बारिश में, जहाँ एक लाइलैक रंग का पंछी भकोस जाता है
लाइलैक के फूल और एक गुलाबी रंग का पंछी डकार जाता है गुलाबों को, वह अनाथ है
मुझे डर लगता है सलेटी भेड़िए से जो घात लगाए बैठा है बारिश में
जो कुछ भी तुम देखते हो, जो कुछ भी यहाँ से ले जाया जा सकता है, वह अकथनीय है
शब्दों ने कर दी है बंद चटखनी सभी दरवाज़ों की
मुझे याद है यहाँ-वहाँ भटकना गूलर के पेड़ों तले…
मगर मैं नहीं रोक पाती हूँ स्वांग – मेरी छोटी-सी गुड़िया के दिल के नन्हे कक्षों में भर जाती है गैस
मैंने असंभव को जिया है, असंभव द्वारा ही नष्ट होते-होते
ओह, मेरे दुष्ट आवेगों की तुच्छता,
जो वशीभूत है प्राचीन स्नेहशीलता के
दो
अब हरे रंग से कोई नहीं रंगता
सब कुछ नारंगी है
अगर मैं कुछ हूँ, तो मैं क्रूरता हूँ
मौन आकाश पर छिटके हुए हैं रंग सड़ते हुए जानवरों की तरह. फिर आकारों, रंगों, कड़वाहट और स्पष्टता से करता है कोई प्रयास कविता रचने का (शांत, आलेहांद्रा, बच्चे डर जाएँगे…)
तीन
कविता विस्तार है और वह घाव छोड़ जाती है
मैं नहीं हूँ अपनी छोटी नीली गुड़िया-सी जो अभी तक करती है पंछियों के स्तनों से पान
स्मृति तुम्हारी आवाज़ की… उस जानलेवा सुबह में जब सूरज था पहरेदार और कछुओं की आँखों से टकरा-टकरा कर लौटती थी उसकी छवि
तुम्हारी आवाज़ को याद करते-करते बुझ जाती है समझ की बाती इस दिव्य हरे मिलन के सामने, ये समुद्र और आकाश का बाहुपाश
और मैं अपनी मृत्यु की तैयारी करती हूँ।
- पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : आलेहांद्रा पिज़ारनीक
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