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पागलों का एक वर्णन

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल

पागलों का एक वर्णन

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

    पागल होने का कोई नियम नहीं है

    इसलिए तमाम पागल अपने अद्वितीय तरीक़े से पागल होते हैं

    स्वभाव में एक दूसरे से अलग

    व्यवहार में अक्सर एक दूसरे से विपरीत

    समांतर रेखाओं जैसे फैलते हैं उनके संसार

    वे भूल चुके होते हैं कि पागल होने से

    बचे रहने के कई नियम हैं

    पुस्तकों में वर्णित हैं नुस्ख़े, सुंदर पुष्ट शरीरों के

    जिनमें निवास करते हैं स्वस्थ मस्तिष्क

    चेहरे के दर्पण में झलकते हुए

    जिन्हें हासिल करने के लिए ईजाद किए जाते हैं

    नए-नए उपाय

    जो अपना मानसिक स्वास्थ्य हमेशा के लिए खो चुके होते हैं

    वे अचानक प्रकट होते हैं

    सूखी रोटियों की एक पोटली के साथ

    कहीं पर विकराल, कहीं निरीह

    वे नहीं जानते कि वे कहाँ से आए

    उनका कहीं जन्म हुआ या नहीं

    उनके होने पर ख़ुशी मनाई गई या नहीं

    और एक खंभे से दूसरे खंभे तक

    इस शाश्वत दौड़ का अर्थ क्या है

    नुक्कड़ पर बैठा एक पागल

    दिन-भर गालियाँ देता है प्रधानमंत्री को

    पटरी पर खड़ा हुआ पागल

    व्यवस्था से एक लंबा युद्ध छेड़े हुए है

    दिन-भर वह बनाता है अपनी रणनीति

    एक पागल औरत भीड़ में पहचान लेती है

    अपने धोखेबाज़ प्रेमी को

    और क्रोध में उस पर अदृश्य पत्थर फेंकती है

    एक प्राचीन पागल चौराहे को गुफा मानकर

    रहता चला आता है

    वह बताता है मनुष्य के कारनामों का रक्तरंजित इतिहास

    तरह-तरह के इशारे करते पागलों के बीच से

    अक्सर गुज़रते हैं स्वस्थ मस्तिष्क के लोग

    उनकी आँखों में थोड़ा-सा झाँककर

    एकाएक सहमते हुए आगे बढ़ जाते हैं

    जैसे झटक देते हों अपने जीवन का कोई अंश

    अपना कोई क्रोध, कोई प्रेम, कोई विरोध

    अपनी ही कोई आग

    जो उनसे अलग होकर अब भटकती है

    व्यस्त चौराहों और नुक्कड़ों पर

    कपड़े फाड़े बाल बिखराए सूखी रोटियाँ सँभाले हुए

    कोई नहीं जानता आधी रात के बाद

    वे कहाँ ग़ायब हो जाते हैं

    कौन-से दरवाज़े उनके लिए खुलते हैं

    और उन्हें अंदर आने दिया जाता है

    शायद वे किसी घर में दस्तक देते हों

    पुरानी दोस्ती का हवाला देते हुए बैठ जाते हों

    कहते हुए—हमें कुछ देर शरण दो

    हम एक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के शिकार हैं

    या फिर वे सिर्फ़ एक कप चाय की फ़रमाइश करते हों

    रोज़मर्रा के काम पर निकलने से पहले

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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