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माँ ने नहीं देखा है शहर

man ne nahin dekha hai shahr

गौरव भारती

अन्य

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गौरव भारती

माँ ने नहीं देखा है शहर

गौरव भारती

और अधिकगौरव भारती

    गुज़रता है मोहल्ले से

    जब कभी कोई फेरीवाला

    हाँक लगाती है उसे मेरी माँ

    माँ ख़रीदती है

    रंग-बिरंगे फूलों की छपाई वाली चादर

    और जब कोई परिचित आने को होता है शहर

    उसके हाथों भिजवा देती है

    माँ ने नहीं देखा है शहर

    बस टेलीविजन पर देखती रहती है ख़बरें

    सुनती रहती है क़िस्सा

    बड़ी-बड़ी इमारतों का

    लंबी-चौड़ी सड़कों पर चार पहिए की क़तारों का

    शहर से लौटा कोई आदमी

    जब नहीं करता है बात

    आकाश, चिड़ियाँ, वृक्षों, घोंसलों और नदियों की

    उन्हें लगता है

    शहर में नहीं खिलते हैं फूल

    उगती हैं सिर्फ़ इमारतें यहाँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : गौरव भारती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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