Font by Mehr Nastaliq Web

बुझलहुँ गिरहत

bujhlaun girhat

विवेकानन्द ठाकुर

अन्य

अन्य

विवेकानन्द ठाकुर

बुझलहुँ गिरहत

विवेकानन्द ठाकुर

और अधिकविवेकानन्द ठाकुर

    बुझलहुँ गिरहत…

    हमरा आउर

    तँ सालमे एकबेर

    पनिजाब कमा अबै छी

    आब

    अहूँ आउर

    एकबेर पनिजाब घूमि आउ

    आँखिक बीझ मेटा आउ

    बुझलहुँ गिरहत…

    लोइयासँ लबेला

    बड्ड कटली गिरहतनी

    ने अहाँ भेलहुँ राजा

    ने भेली रानी

    अनेरे एकटा लुकुम

    मोनक भरम

    गरीबक पेट कटलासँ

    नहि भरल बखार

    खाली भेल

    अपन चालि देखार

    बुझलहुँ गिरहत…

    पनिजाबमे

    बखतपर चाह

    बखतपर पनपिआइ

    बखतपर खाना

    खेतेमे-खरिहानेमे

    मालिक-मजूर

    एक्के पतियानीमे

    केओ बड़का अछि

    तँ अपन घरमे

    खेतमे नहि

    खरिहानमे नहि

    आब हमरो

    बखतेकेँ खाना

    नीक लगैये

    कुटैमकेँ खाना

    अपकार करैये

    बुझलहुँ गिरहत…

    सभ मिलिकऽ

    काज करैये

    काजमे कोताही नहि

    मेहनतमे बैमानी नहि

    अन्नसँ गोदाम उमड़ल छै

    भीतर-बाहर ठेलल छै

    गहूम तँ गहूम

    जकरा भातक कर बान्हक

    नहि लूरि

    से उपजबैये

    अगबे बासमती

    बुझलहुँ गिरहत…

    ने एहन माटि-पानि

    ने एहन हवा-बसात

    मुदा, मेहनत छै

    तँ सभ किछु छै

    एतऽ मेहनत नहि

    तँ सभ किछु अछैत

    किछु नहि…

    स्रोत :
    • पुस्तक : चानन घन गछिया (पृष्ठ 124)
    • रचनाकार : विवेकानन्द ठाकुर
    • प्रकाशन : विवेकानन्द ठाकुर
    • संस्करण : 2011

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY