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जैसे-जैसे

mainne jaise jaise

मानस भारद्वाज

मानस भारद्वाज

जैसे-जैसे

मानस भारद्वाज

और अधिकमानस भारद्वाज

    मैंने जैसे-जैसे

    दुनिया को ज़्यादा जानना शुरू किया

    मेरा चुप रहना बढ़ता गया

    मुझे भाषा एक फ़रेब करने वाला

    ठगों का गिरोह लगने लगी

    मेरे पास जैसे-जैसे कहने को

    ज़्यादा कहानियाँ आने लगीं

    मेरी ख़ामोशी बढती गई

    मैंने जैसे-जैसे प्रेम को जाना

    प्रेम कविताओं से नफ़रत होने लगी

    मैं कवियों को पत्थर से मारना चाहता हूँ

    मुझे अपना लिखा हुआ सब कुछ

    बकवास लगता है

    मैं ज़िंदगी को

    आदिवासी की तरह बिताना चाहता हूँ

    मेरे आस-पास जंगल हो

    और मेरे अंदर जंगल हो

    जंगल ख़ामोशी सिखाता है

    ख़ामोशी इश्क़ की ज़ुबान है

    शहर एक ऐसी जगह है

    जहाँ रहा नहीं जा सकता

    शहर में शोर के सिवा कुछ भी नहीं

    शहर में मेरी औक़ात

    मिक्सचर ग्राइंडर के अंदर फँसे

    चने के दाने से ज़्यादा नहीं

    शहर खाने-सोने-हगने

    और सेक्स के लिए बने हुए

    बड़े सुरक्षित क़बीले को कहते हैं

    जिसमें जंगल के नियम चलते हैं

    यह वह क़िला होता है जिसमें

    अब ऊँची दीवारें नहीं होतीं

    मैं चाहता हूँ एक ताड़ी का जंगल

    मेरे अंदर पनपे, बड़ा हो, फैले

    मैं ज़िंदगी भर ताड़ी पिला सकूँ

    और मक्के की रोटी खिला सकूँ

    दुनिया में रोटी और ताड़ी सत्य है

    बाक़ी सब प्रधानसेवक का जाल है

    स्रोत :
    • रचनाकार : मानस भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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