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मैं यहाँ हूँ

main yahan hoon

शील

अन्य

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शील

मैं यहाँ हूँ

शील

और अधिकशील

    राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए—

    राजनीति के जटिल संघर्ष में,

    मैं यहाँ हूँ... तुम कहाँ हो?

    मैं यहाँ हैं... वे कहाँ हैं?

    किस जगह खड़े हैं?

    किस वर्ण जाति धर्म से जुड़े—

    यर्थार्थ खोदते हैं।

    आप... आप... आप

    पितृसत्ता की मूर्खताओं से धनी

    यथास्थिति के संस्कारों से बँधे

    पिंडदान, गऊदान, कन्यादान की सभ्यता से पीड़ित,

    साहसहीन कुंठा के शिकार बुद्धिजीवियों की तरह—

    ऊँट पर बैठकर भेड़ हाँकते हैं।

    हस्तालिका व्रत पारण,

    शवसुरपुरे साम्राज्ञी भव के उपदेश

    सड़े-गले का परिष्कार—

    किसके गले?

    सामाजवादी लक्ष्य—

    सिद्धांतपूर्ण सामाजिक लक्ष्य है।

    राजनीति के जटिल संघर्ष में—

    मैं यहाँ हूँ, तुम कहाँ हो, ये कहाँ हैं, वे कहाँ हैं?

    सत्ता के संघर्ष में राजनीति की खोज का दौर—

    एक दौर है।

    कुछ करने के इरादों, स्थितिभंजक हौसलों को—

    राजनीति चाहिए।

    तुम जहाँ भी हो,

    ये वे, तुम सब वर्ण जाति धर्म के—

    परिस्थितियों को प्रयाणों में बदलो।

    स्वेच्छाचारिता के जंगल में आग लगाओ।

    शुभ की आँखों देखो,

    अशुभ को जलाओ।

    आप राजनीति से भयभीत हैं—

    भयभीत रहें।

    आप सड़ी-गली सभ्यता गले लगाए हैं—

    लगाए रहें।

    आप मृत से लिपटे हैं—लिपटे रहें।

    किंतु—जीवित पर मृत लादने का पर्याय,

    मैं, तुम, ये, वे... सब जानते हैं।

    यथास्थिति के क़ायल—

    जरायम सभ्यता के मदारी—

    स्थिति भंजकों के लिए—एक सबक़।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कर्मवाची शब्द हैं ये (पृष्ठ 37)
    • रचनाकार : शील
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1980

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