मैं तुमसे प्रेम करता हूँ

main tumse prem karta hoon

आलोक कुमार मिश्रा

आलोक कुमार मिश्रा

मैं तुमसे प्रेम करता हूँ

आलोक कुमार मिश्रा

और अधिकआलोक कुमार मिश्रा

    मैं तुमसे प्रेम करता हूँ

    इसका सबूत इससे बढ़कर क्या होगा कि

    अब फूलों को बस निहारता हूँ

    तोड़ता नहीं

    मुझे बगिया अब तुम्हारे ही बालों का जूड़ा लगती है

    मैं प्राची में उगते सूर्य को देख

    भर जाता हूँ असीम ऊर्जा से

    और पश्चिम में तुम्हारे घर की ओर

    अस्त होने की कामना से

    चल पड़ता हूँ दिन की सड़क पर

    मुझे दिशाएँ इतनी खुली कभी नहीं लगीं कि

    अब से पहले मतवाला बन

    इतनी दूर-दूर तक नाच आता

    आज ये मेरे मन की चौहद्दी बन गई हैं

    मैं देख रहा हूँ फूट रहे

    हर एक अंकुर को

    और रीझ रहा हूँ

    इनमें मुझे प्रेम दिख रहा है

    उगते, बढ़ते और महकते हुए

    लगता है मेरे प्रेम की हरियाली ढाँप लेगी

    धरती का सारा खुरदुरापन

    सुनो, तुम जो नहीं हो अभी मेरे पास

    तो भी मैं अपनी उदासी ज़ाहिर नहीं कर रहा

    मुझे पता है

    प्रेम में जुदाई बरसों की हो सकती है

    पर प्रेम बचा रहता है

    किसी दूब की तरह।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आलोक कुमार मिश्रा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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