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मैं एक पत्ती को देखती हूँ और उससे अपनी आस जोड़ लेती हूँ

main ek patti ko dekhti hoon aur usse apni aas joD leti hoon

आन येदरलुंड

अन्य

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आन येदरलुंड

मैं एक पत्ती को देखती हूँ और उससे अपनी आस जोड़ लेती हूँ

आन येदरलुंड

और अधिकआन येदरलुंड

    मैं एक पत्ती को देखती हूँ और उससे अपनी आस जोड़ लेती हूँ।

    कि साल के ख़त्म हो जाने के बावजूद भी वह रहेगी।

    अगर हवा काँपती होगी और कंपन रह जाएगा अलक्षित।

    मैं उसे अपने ठौर से देखती हूँ।

    क्या हमेशा ही से उसकी जगह नहीं रही है?

    आप में समरूप।

    फिर मुझे कौन-सी चीज़ बनाए रखती है। उससे

    और हमेशा के लिए पीछे करना

    या सिर्फ़ चारों ओर ख़ुद को घुमा देना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : आन येदरलुंड

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