मैं अक्सर देखती हूँ
main aksar dekhti hoon
ग़ौर से तुम्हारे चेहरे की तरफ़
कोशिश करती हूँ तलाशने की
लापता हुए सच को
तुम्हारे चेहरे की रेखाओं में
और पलट जाती हूँ
अपने हृदय की वीथियों को
मैं कुशल ग़ोताख़ोर की तरह
डूबती उतरती हूँ तुम्हारी
आँखों की पनियाली गहराई में
ढूँढ़ती हूँ प्रेम के खोए मोती को
मगर कुछ न पाकर वहाँ अपने लिए
उतर जाती हूँ अपने अंतस में
मैं बेमतलब छूकर देखती हूँ
तुम्हारे हाथ को, प्रयास करती हूँ
उसी स्नेहदिल आदर्श स्पर्श को
महसूस करने का, मगर मुर्दा-सा
एहसास पाकर वहाँ, टटोलती हूँ
अपनी इंद्रियों की नब्ज़
मैं सूँघती हूँ गंध
तुम्हारे बदले हुए परिवेश की
सहेजती हूँ अपने खंडित
व्यक्तित्व को
और पलट जाती हूँ, अपनी हथेली पर
संबंधों का सूर्यास्त लिए, भविष्य की
अँधेरी गुहा में
- रचनाकार : मीनाक्षी जिजीविषा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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