मैं अभी-अभी माँ से मिलकर आया हूँ

main abhi abhi man se milkar aaya hoon

चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले

मैं अभी-अभी माँ से मिलकर आया हूँ

चंद्रकांत देवताले

और अधिकचंद्रकांत देवताले

    वहाँ जैसे सब कुछ आईने के भीतर बसा था

    मैं वही से अभी-अभी माँ के पास से आया हूँ

    उसकी आँखों में आँसू नहीं थे

    और वह वैसी परेशान खटकरम में जुती हुई नहीं थी

    जैसे हम लोगों को बड़ा करते

    इस दुनिया के उस चार कमरों वाले घर में ताज़िंदगी रही

    उसने मुझसे कुछ भी जानने की कोशिश नहीं की

    जैसे उसे पता था सब कुछ

    उसने मुझे उन निगाहों से भी देखा

    जो सारे अपराधों को मुआफ़ी देती है

    एक बार मर चुकने के बाद वह अमर हो गई थी

    मैं उसके लिए सिर्फ़ एक भटकी हुई गूँज था

    जो कभी उसके अतीत की धड़कन थी

    उस थोड़े से बेआवाज़ वक़्त में

    पत्थर का एक घोड़ा और दो कुत्ते ज़रूर दिखे

    कुत्तों के प्रति अपने प्रेम के कारण

    हाथ फेरा एक के माथे पर

    तो उसका उतना हिस्सा रेत की तरह बिखर गया

    चाहते हुए भी माँ को नहीं छुआ मैंने

    पता नहीं किन-किन दुखों-स्मृतियों से भरी थी उसकी देह

    मैंने चाहा किसी भी तरह मैं देख पाऊँ

    उसके स्तनों को चूसते हुए अपने होंठ

    कैसे युद्ध, मंदी और फ़ाक़ामस्ती के उन दिनों में

    चिपटे हुए उसके पेड़ का पक्षी बन जाता था मैं

    मैं उसे नहीं बता पाया

    कि मैं क़साईख़ाने में काम करते शाकाहारी की तरह

    कैसे ज़िंदा हूँ इस दुनिया में

    और शामिल हूँ उन्हीं में जो

    अपनी करुणा की तबाही और

    अपने साहस की हत्या के लिए

    दूसरों को अपराधी समझ रहे हैं

    मैं अभी-अभी माँ से मिलकर आया हूँ

    और पुरखों की प्यास को चाट रहा हूँ

    माँ से अपने ढंग की इस अकेली अधूरी मुलाक़ात के बारे में

    कोई सबूत देना संभव नहीं

    यह तो सपने में हुई

    और इसके लिए मुझे मृतकों में शामिल होना पड़ा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 214)
    • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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