महात्मा तुलसीदास

mahatma tulsidas

दशरथ शास्त्री

दशरथ शास्त्री

महात्मा तुलसीदास

दशरथ शास्त्री

और अधिकदशरथ शास्त्री

    श्रुति-स्मृति-पुराण ही जिनके चक्षु हैं और कलियुग में जनता को

    सुख देने के लिए जिन्होंने देववाणी का अपहरण किया है, वह तुलसी

    गिरिजापति (शंकर) ही थे।

    सूक्ति-रूपी तरंगों की ऊँची लहरों से जिन्होंने अपने अंतर को धो

    लिया है, वह तुलसी कलि-काल में जन्म लेने वालों के लिए तुलसी के प्रेमी

    विष्णु ही थे।

    कलि-युग में अल्प अवस्था और बुद्धि वाले लोगों को वेद-शास्त्र की

    शिक्षा देने वाले श्री-संपन्न तुलसी ब्रह्मा ही थे।

    नाना प्रकार के पुष्पों के रसास्वाद के लिए आकृष्ट होने वाली मक्खियों

    के समूह में राम के चरण-कमलों के रसिक तुलसी भौरे हैं, इसलिए वह

    धन्य हैं।

    भाषा के ऋषि-रूपी पक्षियों के रंगमंच पर, जो प्रसाद, माधुर्य, व्यंग्य

    रस और रीति से शब्दायमान है, कवि तुलसी कोकिल हैं।

    शब्द, अनुमान आदि प्रमाणों तथा प्रबल तर्कों के नख-रूपी हथियारों

    से प्रतिपक्षी-रूपी हाथी के गंडस्थल को विदीर्ण करने वाले तुलसी बलवान्

    सिंह हैं।

    अतिशय प्रेम के कारण जिनका मुख-कमल रात-दिन खिला रहता है,

    ज्ञान-पिपासुओं को शिक्षा देने में जिनका चित्त शांत रहता है, वह तुलसी

    गुरु हैं।

    भक्ति में दूसरे उद्भव, योग में दूसरे दत्तात्रेय, ज्ञान में दूसरे शुकदेव,

    आचार-व्यवहार में दूसरे कात्यायन और कांति में दूसरी चन्द्र-ज्योत्स्ना—इस

    प्रकार तुलसी सर्वत्र सुशोभित हैं।

    दशरथ नाम के विद्वान् ने तुलसी का वर्णन करने वाले इस पद्याष्टक की

    रचना की, जो पाप का नाश और लोगों की कामना पूर्ण करता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 527)
    • रचनाकार : दशरथ शास्त्री
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

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