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महालता

mahalta

अनुवाद : सुरेश सलिल

गैब्रिएला मिस्ट्राल

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    रात के एकांत में; महालता की भाँति

    आरोहित होती है मेरी प्रार्थना,

    टोहती है किसी आदमी की भाँति

    देखती है वह कहीं ज़्यादा उलूक से।

    रात्रि के वृंत के ऊपर, जिसे

    तुमने प्यार किया, जिसे मैं प्यार करती हूँ,

    रेंगती है मेरी विदीर्ण प्रार्थना

    फटी हुई और रफ़ू की हुई, संशययुक्त और निःसंशय।

    यह पथ उसे खंडित करता है

    यहाँ हवाएँ उसे ऊपर उठाती हैं

    हवा के झोंके उसे उछालते हैं

    और मेरी जानी हुई कोई चीज़

    फिर उसे ज़मीन पर ला पटकती है

    अब यह महालता की भाँति रेंगती है

    अब गरम पानी के फ़ौव्वारे की भाँति फूटती है,

    हरेक दबाव पर स्वीकृत और तिरस्कृत।

    मेरी प्रार्थना है, और मैं नहीं हूँ।

    वह प्रवर्द्धित होती है और मैं नष्ट होती हूँ।

    मेरे पास सिर्फ़ मेरी कठिन-कठोर साँस है,

    मेरा विवेक और मेरी दीवानगी।

    मैं अपनी प्रार्थना की वल्लरी से लिपट जाती हूँ

    मैं उसे रात्रि-वृंत के आधार पर झुकाती हूँ।

    हमेशा जीवन की वही महिमा, वही मृत्यु,

    तुम जो मुझे सुनते हो, मैं जो तुम्हें देखती हूँ।

    वल्लरी मेरी देह को कसती है, चटकाती है, झटकारती है और

    चौर डालती है।

    कमज़ोर सिरे को कसकर पकड़े हुए

    मेरी प्रार्थना जब तुम्हारे निकट पहुँचती है

    ताकि मैं जान सकूँ कि वह तुम्हारे पास है

    तुम उसे रात भर सँभाले रखोगे।

    एक आसन्न रात्रि से कड़ियल बनी वह—

    इपिकॉक जैसी कड़ियल, युकेलिप्टस जैसी कड़ियल :

    पथ का उदास फैलाव हो जाती है

    नदी का जमा हुआ मौन हो जाती है।

    और-और आरोहित होती रहती है मेरी महालता

    जब तक लता-तंतु तुम्हारे छोर को छू नहीं लेते।

    जब वल्लरी टूट गिरती है; तुम उसे उठाते हो

    और तुम्हारे स्पर्श से मैं तुम्हें जानती हूँ।

    तब मेरी साँस मंद पड़ जाती है

    मेरा जोश फिर से भड़क उठता है

    मेरा संदेश धधक उठता है।

    तिस पर भी मैं बढ़ती रहती हूँ, मैं तुम्हारा नामोच्चार करती हूँ।

    एक के बाद एक; तुम्हारे सारे नाम तुम्हें बताती हूँ।

    महालता तुम्हारी ग्रीवा को सहलाती है

    तुम्हें कसकर बाँधती है, भींचती है और टिक जाती है।

    मेरी दुर्बल साँस तेज़ हो उठती है

    और शब्द सैलाब बन जाते हैं।

    मेरी निबद्ध प्रार्थना अंततः शांत होती जाती है

    और अंत में बिल्कुल ख़ामोश।

    तब मुझे पता चलता है कि मेरे रुधिर की

    उदास वल्लरी को आश्रय मिल गया है,

    मेरी देह की उलझी हुई लच्छी

    प्रार्थना के दौरान सुलझ गई है :

    और मुझे पता चलता है कि

    धैर्यवान याचना का टूटा हुआ दिल जुड़ गया है

    और वह फिर से, ऊपर ही ऊपर, चढ़ती जा रही है,

    जितना ज़्यादा वह झेलती है; उतना ही ज़्यादा वह हासिल करती है।

    आज की रात बटोर लो मेरी प्रार्थना

    अंगीकार करो उसे और सहेजो,

    सोओ, मेरे प्यार, उतरने दो मेरी नींद को

    प्रार्थना में मेरे निकट,

    और जैसे हम धरती पर थे,

    आगे भी बने रहें वैसे ही।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 96)
    • रचनाकार : गैब्रिएला मिस्ट्राल
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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