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मदिरा स्तोत्र

madira stotr

के. सच्चिदानंदन

अन्य

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के. सच्चिदानंदन

मदिरा स्तोत्र

के. सच्चिदानंदन

और अधिकके. सच्चिदानंदन

    (यूगोस्लाव कवि इज़ेत सरायविच के लिए)

    मदिरा परमेश्वर के हृदय में थी

    जब उसने अंगूर की बेल रची

    प्रेम से उसे मिट्टी में उँडेल दिया था उसने

    प्रत्येक प्याला होंठ से लगाते हुए

    हम चूम रहे होते हैं धरती को,

    ख़ून में मिलती हर बूँद चहचहाती है

    हमें बना देती है वासंती वृक्ष,

    हमारी भुजाएँ पुष्पित हो उठती हैं

    हमारे पत्तों पर पवन गुनगुनाता है प्यार,

    हमारी जड़ें निकल पड़ती हैं यात्रा पर

    पार करती जाती हैं गर्मियाँ, तमाम नरक,

    युद्ध में मरे हुए लोगों के बंधन,

    और वे सपने जो दफ़न हुए गहरे—

    अंततः पहुँचती उस जादुई जल तक

    जो सभी मनुष्यों को एक कर देता है।

    अपने पड़ोसी के नाम, उठाया गया हरेक जाम

    दरअसल है एक शीशे का स्तवन

    उसी के लिए जिस ने

    जल को किया मदिरा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : वह जिसे सब याद था
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : के. सच्चिदानंदन
    • प्रकाशन : किताबघर
    • संस्करण : 1996

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