रूस के जंगलात में
मैंने देखा एक बर्च वृक्ष
वह एक बर्च वृक्ष-लौह
एक बर्च वृक्ष जो ऊपर बढ़ता है अंकुरित
कि आणविक विस्फोट के द्वारा
उसकी तीव्रता और गति का उद्वेलन
और जब उसकी शाखाओं से टपकती है बारिश
डगमगाने लगता है संपूर्ण जंगल
एक आवाज़ के साथ
ऊँघता हुआ
धीमे-धीमे
पुश्किन की एक पंक्ति की तुलना में
घोड़े पर सवार
घनी झाड़ियों में से
अंधगति से
मैं सुनता हूँ आवाज़ पहुँचने की
पहाड़ के सघन मध्य से उभरती हुई
जहाँ स्थित है बर्च वृक्ष
ज़हरीले जंतु चढ़ते हैं उसके तने पर
चिड़ियाएँ उपयोग करती हैं उसकी पत्तियाँ
गिलहरियाँ दूर करती हैं उसकी छाल से
और वह चौंध उत्पन्न करता है
अपनी परछाइयों से
कोई उसे स्पर्श करे
तो वह उछलता है आदिम चीज़-सा
कोई उसे काटे तो
जकड़ जाता है वह भय से
अपने प्राचीन संघर्षों के
कोई देखे उसे
वह प्रहरी होता है एक बार पुनः ऊँची चौकी से
(नारिल्स्क या इन्ता में)
जंगली बैल उसे सूँघते हैं
लेकिन कड़ाके की ठंड में जमे पानी-सा
उसका रक्त जमा रहता है
रूस के जंगलात में
मैंने देखा एक बर्च वृक्ष
और उसमें समस्त युद्ध
समस्त भय
समस्त ख़ुशियाँ
गोली नहीं बिगाड़ सकती है उसका कुछ
और असर नहीं दिखा सकती है उस पर आयु
वह सपने देखता है
और कराहता है
संघर्ष करता है
और कराहता है
रूस के तमाम मृत
जीवित हो उठे हैं उसमें
- पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 260)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : इबॉर्तो पॅदिल्ल्या
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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