लड़ाई

laDai

अवधेश कुमार

और अधिकअवधेश कुमार

    अपने हाथ काटे,

    उन्हें फैला कर कुर्सी के हत्थों पर रखा

    और सभासदों से कहा—

    लो, बाँधो इन्हें।

    अपने पैर काटे,

    रास्ते पर उन्हें जूतों समेत टिकाया

    और लोगों से कहा—

    चलाओ इन्हें।

    अपना सिर काटा,

    एक थाली में सजा कर रख आया उसे

    अपने एक पड़ोसी के दरवाज़े पर : काग़ज़ की

    एक पुर्जी लिखकर—

    लो, निबटो इससे।

    समूचा मुझे कोई नहीं नोचता

    समूचा मुझसे कोई नहीं टकराना चाहता।

    उन्हें चाहिए मेरा कोई अंश

    उनके अपने मतलब का : वह भी

    अप्रत्यक्ष रूप में उपलब्ध।

    उसके लिए मुझे

    किसी किसी माध्यम का सहारा लेना पड़ता है।

    तब मैं अपने धड़ को मैदान में रख देता हूँ

    और आवाज़ लगाता हूँ—

    आओ दोस्तो,

    अपने-अपने निर्णय सुनाओ इसे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अवधेश कुमार
    • प्रकाशन : कविता कोश

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