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लाज

laaj

हंसराज

अन्य

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हंसराज

लाज

हंसराज

और अधिकहंसराज

    ओहि दिन क्रोधावेशमे

    जखन हम अपन बापक कपार फोड़ि देल

    तँ भरि गामक हगामा लोक जमा भेल।

    आ, बिना किछु बुझने

    बिना किछु सुनने

    सभ हमरा कहलक, दुर छिः, दुर छिः।”

    लाठी पटकि जखन हम

    घाड़ सोझ कऽ कहऽ लगलहुँ

    तँ सभ क्यो बुझलनि

    सब क्यो सुनलनि

    आ, सभ हमर बापकेँ कहलनि, —दुर छि: दुर छिः।”

    किन्तु जखन हमर बाप

    माथहाथ दऽ साश्रु नयन कहलनि

    तँ सबकिछु बुझि कऽ

    सभटा सूनिकऽ

    सभ क्यो अपन मुँह लाजेँ लालकऽ

    घर जाइत गेलाह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 71)
    • संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
    • रचनाकार : हंसराज
    • प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, सुपौल, बिहार
    • संस्करण : 1971

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