Font by Mehr Nastaliq Web

क्या तुम बनोगे मेरे आकाश?

kya tum banoge mere akash?

मीनाक्षी जिजीविषा

अन्य

अन्य

मीनाक्षी जिजीविषा

क्या तुम बनोगे मेरे आकाश?

मीनाक्षी जिजीविषा

और अधिकमीनाक्षी जिजीविषा

    बख़्शीश की तरह दी हुई

    तुम्हारी दो गज़ ज़मीन के बदले

    खोना नहीं चाहती मैं

    अपना पूरा आकाश नहीं।

    मुझे स्वीकार्य नहीं

    तुम्हारा शर्तों और वर्जनाओं से भरा

    प्रेम-अनुबंध

    मेरा अस्तित्व…।

    विस्तार चाहता है

    ज़ंजीरें नहीं

    मैं जीवन को टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं

    जीना चाहती हूँ

    पूरा का पूरा एक साथ

    बाँट सकती हूँ मैं

    तुम्हारे साथ अपना आसमान

    मगर सौंपकर तुम्हे अपने पंख

    अपनी उड़ान नहीं दे सकती

    मेरे अंदर बिलकुल साँसों कि ही तरह

    उगती है कविता

    मुझे बहाती हुई

    बहती है मुझमे प्रेम सरिता

    नदी बन

    पहुँच सकती हूँ मैं तुम तक

    मगर पहले तुम्हे सागर होना होगा

    वह पौधा नहीं हूँ मैं

    पकड़ ले जो अपनी जड़ें

    जिस किसी भी मिट्टी में

    आकाश कुसुम हूँ मैं

    खिल सकती हूँ तुममें

    किंतु क्या तुम बनोगे मेरे आकाश?

    स्रोत :
    • रचनाकार : मीनाक्षी जिजीविषा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY