क्षमापराधन स्तवन

kshmapradhan stawan

योगेंद्र गौतम

योगेंद्र गौतम

क्षमापराधन स्तवन

योगेंद्र गौतम

और अधिकयोगेंद्र गौतम

    समय में दौड़ते-दौड़ते हम

    एक दिन थककर रुक जाएँगे

    और सोचेंगे

    आख़िर क्यूँ दौड़े इस तरह अकारण ही?

    जो भी किया क्यूँ किया

    कैसे किया

    कब किया इसका बस धुँधला आभास होगा।

    सब भूल चुकने के दो पायदान पहले

    हमारा प्रायश्चित उस दिन

    चोरों की तरह गर्दन झुकाकर खड़ा होगा।

    अग्नि जैसे बुझने के पहले जमकर फड़फड़ाती है

    उसी तरह सब भूलने से ठीक पहले

    सब याद जाएगा—अचानक—एक साथ

    पर स्मृति का वह दंश क्या झेल पाएँगे हम उस समय?

    याद आते चेहरों की भीड़ में

    पहाड़ों के चेहरे होंगे, जगहों के चेहरे होंगे, जानवरों के चेहरे होंगे

    नक्षत्रों के चेहरे होंगे, पर क्या कोई एक भी चेहरा होगा

    जो उस समय निकाल ले जाएगा हमें उस भूलभुलैया से?

    हमारी आशाएँ सबसे पहले लोगों पर से उठेंगी

    फिर अपने आप से

    और फिर लँगड़े समय पर से उठकर सिरहाने खड़ी हो जाएँगी।

    स्मृतियों में उभरते चेहरे

    आशाओं के घुमड़ते धुएँ में भभककर और लाल दीखेंगे—और डरावने।

    सोचेंगे कि कितना समय पार कर लिया

    पार कर भी लिया या वहीं खड़े रहे

    या यूँ तो नहीं कि समय ही पार करता रहा हमें लगातार

    और हम तटस्थ रह गए?

    समय बीता या हम—

    बीतते जीवन के साथ यह प्रश्न क्यूँ नहीं बीत पाता?

    यूँ तो बीच में कोई नदी नहीं,

    पर तब लगेगा कि है—जिसके उस पार मृतकों की टोली खड़ी है।

    बस नदी पार करके उनमें मिल जाना है।

    उस टोली में कुछ चेहरे जाने लगेंगे, कुछ अजाने।

    और फिर लगेगा कि अपना चेहरा भी भूल गए हैं।

    उस पार के लोग अचानक अपने चेहरे के लगने लगेंगे—

    सबके सब एक शक्ल के!

    अंतिम पायदान पर अश्रुपूरित खड़े हम करबद्ध हो कहेंगे—

    जीवन, हम जीने आए थे, पर जी नहीं पाए। हमें क्षमा करो!

    स्रोत :
    • रचनाकार : योगेंद्र गौतम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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