एक व्यापारी ने क्रय-विक्रय के स्वरूप के संबंध में जिज्ञासा प्रकट की।
अलमुस्तफ़ा ने उत्तर दिया :
पृथ्वी तुम्हें स्वयं अपना कोष प्रदान करती है, उस अमित कोष को अंजलियों में कैसे
भरा जाता है, यह जान लो तो तुम्हें कभी कोई कमी न रहे।
पृथ्वी के इस दान-प्रतिदान से ही तुम अक्षय धन के स्वामी और सदा संतुष्ट रह
सकते हो।
किंतु यदि यह दान-प्रतिदान प्रेम और न्याय के आधार पर न हो, तो यह विनिमय
कुछ को लोभी और कुछ को भिखारी बना देगा।
समुद्रों, खेतों और द्राक्षोद्यानों में परिश्रम करने वालो! तुम जब कपड़ा बुनने और मिट्टी
घढ़ने वाले शिल्पियों से बाज़ार में मिलो तब,
—धरती माता की आत्मा का स्मरण करके अपनी तराज़ू के उन पलड़ों को शुद्ध कर
लेना—जिनसे तुम्हें माल तोलना है।
—और, अपने व्यापार में उन रिक्तहस्त व्यापारियों को हस्तक्षेप न करने देना, जो केवल
मीठे शब्द बोलकर तुम्हारे श्रम का फल लूटना चाहते हैं।
उन्हें कहना :
हमारे साथ खेतों में आओ या हमारे साथी श्रमिकों के साथ समुद्र-तट पर जाकर
संचय के साझीदार बनो।
क्योंकि धरती और समुद्र का अक्षय कोष हमारे ही लिए नहीं, तुम्हारे लिए भी विपुल
उदार है।
यदि तुम्हारे व्यवहार-व्यापार के अंतराय में नाचने-गाने या बंसी बजाने वाले आएँ, तो
उनके गुणों का भी मूल्य लगाना।
क्योंकि उन्होंने भी इसी पृथ्वी के गर्भ-कोष से अपनी झोली भरी है। उनकी झोली में
जो द्रव्य हैं, वे कोमल सपनों से बने हैं। वे रत्न तुम्हारी अंतरात्मा के वरदान हैं!
और उस हाट को छोड़ने से पहले यह देख लेना कि उस बाज़ार से कोई अपनी राह
ख़ाली हाथ तो नहीं गया।
क्योंकि ब्रह्माण्ड का पोषक भगवान् तब तक पवन के झोंकों पर चैन से नहीं सोएगा,
जब तक तुम्हारे मध्य क्षुद्र से क्षुद्र जीव की भी कामना पूर्ण नहीं हो जाएगी।
- पुस्तक : मसीहा
- रचनाकार : ख़लील जिब्रान
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 2016
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