किस घनी तूफ़ानी रात ने
kis ghani tufani raat ne
किस घनी तूफ़ानी रात ने तुम्हारा चेहरा छिपा लिया है
और जब मेरे सीने की जर्जर दीवारें बजती हैं
किस गाज की धमक बिस्तर से तुम्हें डरा देती है?
निर्वृक्ष मैदानी ओस में फँसा मैं काँप रहा हूँ।
अरे, भटक गया हूँ मैं जंगल की मायावी पगडंडियों पर!
मेरे पैरों में उलझी हुई ये लताएँ हैं या साँप?
मैं डर के मेनहोल में गिर गया हूँ
और मेरी चीख़ पानी के शोर में घुट गई है।
कब सुनूँगा दोबारा मैं तुम्हारी आवाज़ प्रमुदित—प्रदीप्त प्रभात?
कब पहचानूँगा मैं दोबारा अपने आपको
खिड़कियों जैसे बड़े, आँखों के हँसते आइने में?
और कौन-सा उत्सर्ग करेगा संतुष्ट, देवी के सफ़ेद मुखौटे को—
चूज़ों या बकरों का ख़ून, या मेरी रगों में बहता बेकार ख़ून,
या मेरे गीत का मंगलाचरण, मेरे आत्मगौरव का प्रक्षालन?
दो मुझे मांगलिक संदेश।
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 212)
- रचनाकार : लियोपोल्ड सेडार सेंगोर
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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