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कि उसने कहा

ki usne kaha

मुदित श्रीवास्तव

अन्य

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मुदित श्रीवास्तव

कि उसने कहा

मुदित श्रीवास्तव

और अधिकमुदित श्रीवास्तव

    कहीं एक घर है

    बिना दरवाज़ों का

    कहीं एक नदिया बिना पाटों की है

    कि उसने कहा

    प्रेम है।

    एक जंगल बिना पेड़ों का है

    हवा थी बिन सरसराहट लिए हुए

    एक प्यास गले में बैठी

    बिन पानी की माँग के साथ

    एक थिरकन

    पाँवों में बेड़ियों-सी

    कि कुछ था

    नहीं कुछ लिए हुए

    कि कुछ था

    जिसके होने से

    दुनिया में और भी बहुत कुछ था

    कुछ नहीं होने के लिए

    और अब जब यहाँ

    कुछ भी नहीं बचा

    प्रेम करने के लिए...

    तब ही उसने कहा

    कि प्रेम है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मुदित श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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