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खुरदुरे पत्थर

khurdure patthar

लोकनाथ

लोकनाथ

खुरदुरे पत्थर

लोकनाथ

और अधिकलोकनाथ

    प्रवाह के साथ बहते

    चिकने पत्थर

    प्रतिरोध नहीं करते

    उनका आकार-प्रकार

    गति और स्थिति

    सब नदी से है

    नदी ही देती है उन्हें शक्ल-ओ-सूरत

    प्रवाह पतित होने के बाद

    मायने नहीं रखता

    उनका अपना कोई चुनाव

    अपनी कोई पसंद

    कोई इच्छा

    साथ-साथ बहना

    अनगिन थपेड़े सहना

    तलहटी में चुपचाप पड़े रहना

    उनकी नियति है

    लेकिन खुरदुरे पत्थर

    आत्मसमर्पण नहीं करते

    प्रवाह से टकराते हैं

    दो-दो हाथ करते हैं

    नदी के शांत स्निग्ध प्रवाह में

    मचाते हैं हलचल

    नदी में सहसा उछल पड़ने वाली बूँदें

    बनने वाली ऊर्मियाँ

    गवाह हैं इसकी

    खुरदुरे पत्थर ज़मीन पर

    मज़बूती से टिकाए रखते हैं अपने पाँव

    नदी को साधने का

    साधते हैं दाँव

    खुरदुरे पत्थर नदी को

    फिसलने से बचाते हैं

    थामते हैं, विलमाते हैं

    नदी को छुपने की

    सुस्ताने की देते हैं ठाँव

    सही मायने में

    खुरदुरे पत्थर ही गढ़ते हैं नदी को

    देते हैं दिशा और आकार

    तोड़ते हैं उसकी एकरसता

    घोलते हैं नवीनता

    रचते हैं नया संगीत

    सौंदर्य का नया संसार

    खुली आँखों से देखना

    खुरदुरे पत्थरों का खुरदुरापन

    सब कुछ बयाँ करता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : खुरदुरे पत्थर (पृष्ठ 101)
    • रचनाकार : लोकनाथ
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2024

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