ख़ुद से प्रेम करना

khu se prem karna

नेहा अपराजिता

नेहा अपराजिता

ख़ुद से प्रेम करना

नेहा अपराजिता

और अधिकनेहा अपराजिता

    ख़ुद से प्रेम करने वालों को

    वह सब

    ख़ुद से नफ़रत करना आसानी से सिखा देते हैं।

    मानो, ख़ुद से प्रेम करना

    ख़ुद से नफ़रत करने की पहली सीढ़ी चढ़ना है।

    वह लोग कभी सही नहीं समझे जाएँगे

    जिन्होंने प्रत्यक्ष दिखते ग़लत को भी

    महज़ इसलिए अनदेखा किया हो

    कि ग़लत करने वाला उसके हृदय में बसता है

    उनका दंड है कि

    दुनिया उन्हें ग़लत साबित करती रहे।

    प्रेम में डूबी स्त्री का चेहरा

    बुद्ध-सा नहीं दिखता

    बुधिया-सा दिखता है

    संपूर्ण पोषण मिलने पर भी

    चेहरे की वीरानियत

    उसे पाषाणकालीन स्त्री-सा बना देती है।

    वह मर रहे हैं

    इसलिए नहीं क्योंकि

    मरना उनकी नियति है

    बल्कि इसलिए क्योंकि

    उनको मरने से कोई रोकने वाला ही नहीं

    बात बेबात उनसे कह दिया जाता है

    'जाओ मर जाओ'

    वे इतने ख़ुदग़र्ज़ लोग

    वे चले भी जाते हैं।

    अभिशप्त जीवन

    इतनी आसानी से हासिल नहीं होता

    दिन रात ख़ुद को

    दूसरे को समर्पित करने वाले

    एक दिन पाते हैं

    कि उनके समर्पण ने

    उनका संपूर्ण जीवन अभिशप्त कर दिया है

    जिंदा शरीर और मृत आत्मा लिए

    बस वे जिए जा रहे हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नेहा अपराजिता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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