Font by Mehr Nastaliq Web

खींचती है मुझे अपनी ओर कू-कू की आवाज़-पाँच

khinchti hai mujhe apni or ku ku ki avaz paanch

लक्ष्मीकांत मुकुल

अन्य

अन्य

लक्ष्मीकांत मुकुल

खींचती है मुझे अपनी ओर कू-कू की आवाज़-पाँच

लक्ष्मीकांत मुकुल

और अधिकलक्ष्मीकांत मुकुल

    जब लहराती हैं शिरीष वाले खेत में 

    गेहूँ की रोएंदार बालियाँ 

    गदराती है मटर की छमियाँ

    हवा के झोंके से झिल-मिलाते हैं

    तीसी के नीले फूल 

    सरसों के पीले फूलों से भर जाती है बधार 

    तभी वह आती है कू-कू करती हुई 

    बाँस के झुरमुटों,

    वन बेरियो की झाड़ियों,

    मकोह की झलाँस में

    ताज़े गुड़-सी महकती आवाज़ लिए 

    कहती हुई कि प्रेम करने का माकूल समय है यह

    मिलने को आतुर हो खोजने लगता हूँ तुम्हें 

    नदी-घाट,पोखरा, खेत-खलिहान 

    डरते हुए कि कहीं बीत ना जाए 

    मिलन का यह समय, यह चाहत 

    जैसे पेड़ की डाल से चूक गए

    बंदर को नहीं मिलते चखने को ताज़े फल 

    सूख चुकी फसलों को नहीं मिलता फिर से जीवन

    असमय बारिश की झड़ी से...!

    स्रोत :
    • रचनाकार : लक्ष्मीकांत मुकुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY