कविता की कहानी

kawita ki kahani

एच. एस. भीमनगौडर

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कविता की कहानी

एच. एस. भीमनगौडर

और अधिकएच. एस. भीमनगौडर

    किसी ज़माने में

    ऊपर सुदूर विशाल आकाश में

    अलबेला-सा उड़ा था पंछी बनकर, तारा बनकर।

    मिट्टी की सोंधी बू से मोहित होकर

    वहाँ से यहाँ तक सेतु बाँधकर

    नए तराने के साथ कसरत की थी

    आम आदमी के लिए चमत्कारी बना था।

    एक बार अचानक हाल में,

    फँसा मक्कारों के जाल में;

    शाबाशी दी मक्कारों ने;

    अज्ञानियों को सुज्ञानी बनाने में

    मेरा उपयोग करना चाहा;

    लोगों में राजनीति की जागृति

    लाने में प्रयोग करना चाहा;

    सड़ाँध मेलों में ग़दर मचाने के लिए

    बड़ा ही प्रयोजनकारी माना मक्कारों ने।

    मेरे पंखों में पिन अटकाकर

    रंग-बिरंगे नारे लटकाकर

    दसों दिशाओं में उड़ान भरने

    भुर्रर्र के साथ उड़ा दिया।

    उड़ूँ कैसे?

    मुँडेर से मुँडेर पर फूदककर—कौआ बना।

    ताली पीटकर हँसे मक्कार,

    टहनी से नीचे गिरकर—मुर्गी बना

    मक्कारों ने समझा—चलो, ठीक ही हुआ

    शेखचिल्ली की तरह मेरे अंडों का

    हिसाब लगाकर टोकरे में

    बंद किया मक्कारों ने;

    अंडे देते देख बेसब्री से आख़िर

    छुरा चला दिया मक्कारों ने।

    रो रहे हैं बुजुर्ग दहाड़े मार-मार

    कि इन नए दुष्टों ने ही मेरी हत्या की

    उसे देखकर लोट-पोट हँस रहे हैं

    अब ये मक्कार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1984 (पृष्ठ 66)
    • संपादक : बालस्वरूप राही
    • रचनाकार : एच. एस. भीमनगौडर
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1984

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