Font by Mehr Nastaliq Web

कविता के दूसरे समय में

kavita ke dusre samay mein

आनंद बहादुर

अन्य

अन्य

आनंद बहादुर

कविता के दूसरे समय में

आनंद बहादुर

और अधिकआनंद बहादुर

    क्या तुम

    मेरी आँख की प्रतीक्षा हो

    सूनापन

    जिसकी नींद में खुलती है मेरी आँख

    उसमें से बहकर 

    बनकर पानी, पत्थर, रेत निकलती 

    इतनी रीती हुई कि अब मेरे पास

    इसका कोई विलोम नहीं

    इस जगह से सभी पात्र चले गए हैं 

    उनके शब्दहीन अभिनय चले गए

    स्मृति भी यहाँ अब अशब्द अभिनय है

    भाषा में उसका कोई अनुवाद नहीं है

    जितनी भर आँख से तितीक्षा की दूरी

    तितीक्षा से नींद की दूरी

    नींद से स्वप्न की दूरी

    स्वप्न से चाँद की दूरी

    उससे अधिक दूर है कल्पना

    कल्पना से अधिक दूर सत्य

    सत्य से अधिक दूर है श्वास

    श्वास से अधिक दूर पदचाप

    पदचाप से अधिक पगचिह्न

    पगचिह्न से अधिक आगमन

    वह कोई दूसरी कविता रही होगी

    जिसे उपमान उठा लाए हैं यहाँ

    जिसका यह प्रतीक—

    धूप उठा लाई है

    जिसके अंदर की धूप को 

    पंछियों के डैने उठा लाए

    डैनों को बीज उठा लाए

    वह प्रेम का दूसरा समय होता

    रंग का दूसरा समय होता

    रस का दूसरा समय होता

    होंठ का, सीने का

    सीने की धड़कन का 

    दूसरा समय होता

    वह कविता का दूसरा समय होता

    मैंने कहा जाओ

    मेरे रंग

    मेरे रस

    मेरे दृश्य

    मेरे क्रंदन

    इस धरती पर तुम्हारा समय

    अभी मौजूद नहीं है

    कविता के दूसरे समय में आओ

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बहादुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY