एक महिला ने प्रश्न किया : कष्ट क्या है?
अलमुस्तफ़ा ने कहा :
तुम्हारे कष्ट सीपी के उन परदों के खुल जाने की प्रक्रिया हैं जो परदे तुम्हारे ज्ञान रूपी
मोती को बंद किए रखते हैं।
जैसे किसी फल को सूर्य के प्रकाश में आने के लिए बीज के प्रस्फुटन-कष्ट को सहन
करना पड़ता है वैसे ही तुम्हें विकास के पूर्व कष्ट सहन करना पड़ेगा।
और यदि तुम जीवन के अन्य अनुदिन घटने वाले आश्वयों को सहर्ष देखते हो तो तुम्हें
यह कष्ट भी किसी आनंद से कम आश्चर्यप्रद प्रतीत न होंगे।
और तब तुम अपने हृदय की विविध ऋतुओं को उसी प्रकार प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार
करोगे, जिस प्रकार तुम अपने खेतों के ऋतु-परिवर्तनों को करते हो।
तभी तुम शोकग्रस्त हृदय के शिशिर शीत को भी प्रशांत मन से कह सकोगे।
कष्ट का अधिकांशत्व तुम्हारा स्वयं शापित ही होता है। कष्ट एक कड़वी औषधि है।
तुम्हारा अंतर्वासी वैद्य तुम्हारी रोगार्त आत्मा को कष्ट की कड़वी औषधि से ही नीरोग
करता है।
उस वैद्य पर श्रद्धा रखो और मौन-प्रशांत मन से उसकी औषधि का सेवन करो।
उसका हाथ प्रत्यक्ष रूप से कितना ही कठोर क्यों न हो, उसका संचालन अत्यंत
कोमल हृदय द्वारा ही होता है।
उसका औषधि-पात्र यद्यपि तुम्हारे होंठों को गरम लगती है; किंतु स्मरण रहे, वह
मृत्पात्र विधाता के अश्रुजल से सिक्त मिट्टी से बना है।
- पुस्तक : मसीहा
- रचनाकार : ख़लील जिब्रान
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 2016
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