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तेरी ध्वनि आ रही सदा मेरे पीछे-पीछे

teri dhwani aa rahi sada mere pichhe pichhe

अनुवाद : हिरण्मय

के. एस. नरसिंहस्वामी

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के. एस. नरसिंहस्वामी

तेरी ध्वनि आ रही सदा मेरे पीछे-पीछे

के. एस. नरसिंहस्वामी

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    तेरी ध्वनि रही है सदा मेरे पीछे-पीछे

    छिपी-छिपी-सी

    आशा की पुतली-सी

    सजीव यंत्र-सी

    जैसे-जैसे बढ़ता हूँ आगे

    तेरी ध्वनि बढ़ती है पहाड़-सी मेरी पीठ के पीछे-पीछे।

    चाहे मंदिर के दीप जलते जावें, चाहे सौ-सौ नगाड़े बजते जावें :

    मैं यहाँ नहीं हूँ, नहीं हूँ।

    वृथा है तेरी श्रद्धा।

    अरे! मैं क्या पत्थर हूँ? नहीं,

    ऐसी इच्छा मेरी नहीं,

    मुझसे क्यों दूर हुआ, पुत्र? बोली तेरी ध्वनि।

    तेरी ध्वनि : सौ बार चला हूँ तेरे सम्मुख

    चढ़ा क्रॉस पर ईसा बनकर

    ज्ञान-भिक्षु बुद्ध बनकर

    लोकमित्र गांधी बनकर

    दीप लिए एकाकी

    यही बसने की आशा है मेरी तू तो कह सका ‘रुक जा!’

    नींद में सौ बार आई स्वप्न बनकर तेरी ध्वनि

    तू ही मेरी आशा।

    पर मैं हूँ तेरा कोई?

    बाप बूढ़ा बना तो क्या हुआ?

    क्या लगता तुझे भला?

    तुझे देखा, दुखी हुआ, उल्टे पाँव दौड़ आया।

    जब हट जाएगी मेरी छाया, मेरे नाम की धूलि पर

    एक किसी कोने में,

    अति दूर जंगल में,

    तू बोला रुको यहाँ,

    मुझे पत्थर पसंद नहीं 'बेटा' कह पुकार रहा हूँ।

    जगत् में सौ बार विनती कर गई तेरी ध्वनि :

    लोक या पहले मेरा,

    अब बन गया तेरा,

    कैसे पग धरूँ उस राज्य पर

    जिसको मैंने छोड़ दिया था?

    हृदय-मंदिर तेरा ही बने नंदन-वन मेरा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 133)
    • रचनाकार : के. एस. नरसिंहस्वामी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

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