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कालचक्र

kalachakr

कामिनी

अन्य

अन्य

कामिनी

कालचक्र

कामिनी

और अधिककामिनी

    हम अहिल्या नहि छी

    जे बिना कोनो अपराधक

    शापित भऽ

    पाथरक शिला बनल

    अघोर जंगलमे

    नितान्त असगर

    शीत रौदमे तपैत

    वर्षामे भीजैत

    करैत रहब प्रतीक्षा

    कोनो गृहत्यागी

    वनवासी रामक

    जे हमर उद्धार करत

    पाथरसँ स्त्री देहमे परिवर्तित करत

    हमरामे नहि अछि

    साहस/नहि अछि धैर्य

    जे प्रतीक्षा करत

    युग-युग तक

    परिवर्तनक

    हम तऽ हाड़मांसमे लेपटाओल साधारण

    स्त्री देह छी

    जकरा बनवासी, गृहत्यागी

    ऋषि नहि

    गृहवासी पति चाही

    संग चलबाक लेल

    संग निभेबाक लेल

    आइ हम सहन नहि करब

    अन्याय

    जे गौतम ऋषि कयने छलाह

    पत्नीकेँ पाथर बनौने छलाह

    आइ हम मूड़ी झुका

    सुनबो नहि करब

    अहाँक सब बात

    अहाँक सब शाप

    जे सुनने छलीह अहिल्या

    बिना कोनो रोषकेँ

    बिना कोनो दोषकेँ

    आइ हम ठाढ़ छी

    अडिग स्तम्भ बनि

    पुरुष दम्भक समक्ष

    असगरे/साहस सामर्थ्य लेने

    आइ अहाँ हमरा

    पाछूसँ दलदलमे धकेलि

    मुँह मोड़कऽ /छोड़ि नहि सकैत छी

    आइ हम कसि कऽ

    पकड़ने छी

    अपना हाथसँ/अहाँक हाथ

    उसरमे चलब तऽ संग-संग

    दलदलमे फंसब तऽ संग-संग

    युग-युगसँ

    कालचक्रमे पिसाइत-पीसाइत

    आब मुक्तिक साँस लेलौं अछि

    अपना मादे सोचलौं अछि

    स्रोत :
    • पुस्तक : परती परहक फूल (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : कामिनी
    • प्रकाशन : शेखर प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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