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कहीं दूर

kahin door

मारीना त्स्वेतायेवा

अन्य

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और अधिकमारीना त्स्वेतायेवा

    कहीं दूर, बहुत दूर से कवि शुरू करता है अपनी कहानी,

    और उसे ले जाती है कहीं दूर, बहुत दूर उसकी अपनी ही

    क़िस्सा-बयानी।

    नक्षत्रों और स्मृति-चिह्नों के पास से गुज़रता...किन्हीं

    बोधकथाओं के

    झटकों में झूलता...हाँ और ना के बीच वह किसी घंटाघर से

    छलाँग लगाते सन्न से गिरता है नीचे...

    क्योंकि पुच्छलतारों का रास्ता ही

    कवियों का रास्ता है। कारणत्व के छिन्न-भिन्न तार—

    वही तो उसके बंधन हैं! तुम अपना सिर टेढ़ा कर ऊपर

    उठाए हुए

    डूब जाओगे हताशा में! क्योंकि कवि को ग्रहण लगने का समय

    बँधा नहीं है किसी पंचांग की अटल व्यवस्था से।

    वह है कि कभी ताश के पत्ते कर देता है गडमड,

    कभी छलता है नाप-तौल और हिसाब-किताब दोनों को,

    वह है जो शंकाएँ उठाता है कक्षा में अपनी जगह से,

    और कभी उड़ा देता है कांट के दर्शन की धज्जियाँ।

    वह है जो लेटा हुआ है बास्तील के पत्थर के कफ़न में

    जैसे पेड़ अपने सौंदर्य में।

    वह है जिसके चरणचिह्नों ने सदा ठंडा कर दिया है

    उस ट्रेन को जो हर आदमी से

    छूट जाती है...

    —क्योंकि पुच्छलतारों का रास्ता ही—

    कवियों का रास्ता है—उष्णता के बजाय उबलता-सा,

    थपथपाने के बजाय चीरता-फाड़ता-सा—सब कुछ विस्फोटित

    और ध्वंस—

    तुम्हारा जीवन-पथ, घोड़े के बालों-सा और उलझा हुआ,

    बँधा नहीं किसी पंचांग की अटल व्यवस्था से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 63)
    • संपादक : नामवर सिंह
    • रचनाकार : मारीना त्स्वेतायेवा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1978

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