जो रातें उजली हैं स्त्रियों के लिए

jo raten ujli hain istriyon ke liye

शालिनी सिंह

शालिनी सिंह

जो रातें उजली हैं स्त्रियों के लिए

शालिनी सिंह

और अधिकशालिनी सिंह

    सूरज ग़ुरुब होने के बाद आसमान की सिटकनी चढ़ाकर

    लौट आती हूँ घर

    और चढ़ा लेती हूँ घर के दरवाज़ों के पट भी

    शाम होते ही अकेले में सूखने लगता है कंठ

    लौट-लौट आती हैं बीते समय की सुनी-अनसुनी कथाएँ

    कि जब रात बिरात कोई नहीं होता सन्नाटे में

    तो वहीं विचरते हैं दूसरी आधी आबादी के लोग

    और दबोच लेते हैं

    सड़क पर चलते हुए शिकार को

    तब नहीं आता कोई देवता बचाने

    वे भी बुत बने शांत खड़े रहते हैं देवालयों में

    स्त्रियों से भरे आँगन और दुनिया में प्रवेश के लिए

    नियत हैं कुछ दिन

    जब देवता उदार और विनम्र चित्त होते हैं

    वे दिन उत्सव या उपवास के होते हैं

    उन रातों में स्त्रियाँ किसी भी भय या चिंता से मुक्त तारों को

    अपनी हथेलियों पर सजाने निकलती हैं जो

    बाज़ार रोज़ाना रात की देह में छिप जाया करते थे

    वे बाज़ार रात भर चहल क़दमी करते रहते हैं

    रात को निकलने वाले आखेटक

    मन मसोस कर पड़े रहते हैं घरों के भीतर

    कि अगले दिन देवताओं के पूजने की तैयारी के

    निमित्त ही ये सारे प्रयोजन हैं

    स्त्रियों के उजले हाथ मेहँदी लगवाने की पंक्ति में

    देर रात तक करते रहते हैं

    अपनी बारी का इंतज़ार

    स्त्रियों से भरी सड़कों के आलोक में

    रातें कुछ अधिक चमकदार हो जाती हैं

    उनकी हँसी के बल्बों से चमकने लगता है आकाश सारा

    उन उजली रातों के द्वार पर कोई भय, कोई संशय दस्तक नहीं देता

    पास नहीं फटकता सपनों के ख़रगोशों को दबोचने वाला कोई बाज़

    उन सुंदर रातों की ही प्रतीक्षा में

    रात रानी के फूल महकते हैं

    मुझे अपने देवता को उपवास से रिझाने का भाव

    समझ नहीं आता

    इससे मेरे देवता कुपित होते हैं तो हो जाएँ

    मुझे रास्तों का ज्ञान नहीं

    तो स्त्रियों से भरी उन्मुक्त रातों में

    साइकिल के पैडल पर पाँव रख निकल जाऊँगी

    आसमान से रात के सफ़र का रास्ता पूछती हुई

    नहीं ठहरूँगी क्षण भर भी

    लगाऊँगी पूरे शहर की फेरी

    मेरे पाँवों में चक्कर लगा है कि

    आज रात की बाँहों में स्त्रियों के संग का सुख हासिल है

    कल से फिर रात के सीने पर

    पुरुषों का मत्त झुंड निकलने लगेगा

    स्रोत :
    • रचनाकार : शालिनी सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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